Hindi, asked by shailendrat458, 2 months ago

होरी का चरित्र चित्रण कीजिए ​

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Answered by Anonymous
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समीक्षक – डॉ. नीलिमा चौहान, डॉ. जाकिर हुसैन कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय

उपन्यासकार प्रेमचंद के द्वारा सन 1936 में रचा गया उपन्यास ” गोदान” हिंदी साहित्य की महत्‍त्‍वपूर्ण उपलब्धि है । प्रेमचंद से पहले का हिंदी उपन्यास अपनी दिशा व उद्देश्य के अभाव में या तो केवल उपदेशवादी और सुधारवादी स्वरों को अभिव्यक्त कर रहा था या बस पाठकों के मनोरंजन के लिए रचा जा रहा था । परंतु गोदान की रचना से उपन्यास की विधा अपने शैशव को लांघकर परिपक्व हो गई और उपन्यास सच्चे अर्थों में सामाजिक यथार्थ से जुड़ सका । आलोचक रामस्वरूप चतुर्वेदी के शब्दों मेंकहें तो ” प्रेमचंद हिंदी उपन्यास की वयस्कता की प्रभावशाली उद्घोषणा हैं “। हिंदी उपन्यास साहित्य में प्रेमचंद के आगमन को एक ऎतिहासिक घटना माना जा सकता है । सेवासदन , प्रेमाश्रम , रंगभूमि ,कायाकल्प, निर्मला ,प्रतिज्ञा , गबन , कर्मभूमि से गुजरती हुई प्रेमचंद की उपन्यास कला का चरमोत्कर्षउनके द्वारा रचा गया उपन्यास गोदान ही है ।इस उपन्यास को प्रेमचंद की रचनात्मक परिपक्वता और उनके यथार्थवादी चित्रण के लिए जाना जाता है ।

गोदान को किसान जीवन की समस्याओं , दुखों और त्रासदियों पर लिखा गया महाकाव्य माना जाता है । इस महाकाव्य की कथा में गांव और शहर के आपसी द्वंद्व ,भारतीय ग्रामीण जीवन के दुख , गांवों के बदलने टूटने बिखरने के यथार्थ और जमींदारी के जंजाल से आतंकित किसानों की पीड़ा का मार्मिकचित्रण है । यह उपन्यास होरी के नायकत्व के चारों ओर बुना गया है । होरी कोई धीरोद्दात नायक नहीं न ही उसके चरित्र में महानता और चमत्कार ही है । वह एक अतिसाधारण मनुष्य है और अतिसाधरण भारतीय किसान का प्रतिनिधित्व करने वाला पात्र है । धूप और संघर्षों से सांवली और सूखी पड़ गई उसकी त्वचा ,पिचका हुआ मुंह , धंसी हुई निस्तेज आंखें और कम उम्र में ही संघर्षों की मार से बुढ़ाया हुआ मुख – होरी के इस बिंब से किसी भी भारतीय किसान का चेहरा बरबस सामने आ जाता है । होरी और उसके जैसे असंख्य किसानों की जीवन दुर्दशा का चित्र पेश करते हुए प्रेमचंद लिखते हैं –

घर का एक हिस्सा गिरने को हो गया । द्वार पर केवल एक बैल बंधा हुआ था , वह भी नीमाजान- अब इस घर के संभलने की क्या आशा है- सारे गांव पर यही विपत्त्ति थी । ऎसा एक भी आदमी नहीं थाजिसकी रोनी सूरत न हो। चलते फिरते थे , काम करते थे , पिसते थे, घुटते थे ,इसलिए कि पिसना और घुटना उनकी तकदीर में लिखा था । जीवन में न कोई आशा और न कोई उमंग, जैसे उनके जीवन के सोते सूख गए हों और सारी हरियाली मुरझा गई हो , भविष्य अंधकार की भांति उनके सामने है ” ।

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