Hindi, asked by sanjaysaini968523270, 4 months ago

བབ་
པ་ལ་་་་་་
'हार की जीत' पाठ को पढ़िए और बताइए कि बाबा भारती से मिलने कौन आया, वह अपने उद्देश्य में के
हुआ? कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
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Answers

Answered by arpitasinghchauhan8
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Answer:

प्रश्न 1.

सही विकल्प चुनकर लिखिए

(क) बाबा भारती रहते थे

(i) कुटिया में

(ii) मन्दिर में,

(iii) राजमहल में

(iv) बड़े भवन में।

उत्तर-

(ii) मन्दिर में

(ख) बाबा भारती को खड्ग सिंह ने रोका

(i) अपाहिज बनकर,

(ii) वैद्य बनकर,

(iii) किसान बनकर

(iv) पुजारी बनकर।

उत्तर

(i) अपाहिज बनकर

प्रश्न 2.

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(क) जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी ……….. अंकित हो जाती है।

(ख) बाबा भारती और खड्ग सिंह ……..” में पहुंचे।

(ग) ओ बाबा ! इस …..” की सुनते जाना।

(घ) अब कोई .की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।

उत्तर

(क) छवि

(ख) अस्तबल

(ग) कैंगले

(घ) गरीबों।

प्रश्न 3.

एक या दो वाक्यों में उत्तर दीजिए

(क) बाबा भारती अपने घोड़े को किस नाम से पुकारते थे?

उत्तर

बाबा भारती अपने घोड़े को ‘सुलतान’ नाम से पुकारते थे।

(ख) खखड्ग सिंह कौन था ?

उत्तर

खड्ग सिंह उस इलाके का कुख्यात डाकू था।


arpitasinghchauhan8: please
arpitasinghchauhan8: make me as Brinlist
Answered by ritikakumari72
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सुबह जब बाबा भारती अपने अस्तबल में गए, तो उनका घोड़ा ‘सुल्तान’ हिनहिना रहा था। उन्हें यक़ीन न आया। किंतु यह सच था। डाक़ू खड्ग सिंह की आत्मा ने उसे धिक्कारा और वह रात को ही घोड़ा चुपचाप वापस बाबा के अस्तबल में बाँध आया। लेकिन दिल्ली के अस्तबल से सुल्तान ऐसे गायब हुआ कि दोबारा फिर अभी तक वापस लौटकर नहीं आया।

हार की जीत नामक इस कहानी के लेख सुदर्शन ने बाबा भारती के घोड़े सुल्तान और बाबा भारती के रिश्ते को कुछ इस तरह से बताया था- “माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था।”

दिल्ली की राजनीति ने बाबा भारती और डाकू खड्ग सिंह की कहानी को एक बार फिर प्रासंगिक कर दिया है। यह बताना शायद आवश्यक नहीं है कि दिल्ली की राजनीति में डाकू खड्ग सिंह और बाबा भारती कौन है। दिल्ली की जनता तो कम से कम बाबा का घोड़ा सुल्तान ही है।

2015 के विधानसभा चुनाव और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के बीच कोई ख़ास बदलाव देखने को नहीं मिला है। आंदोलन और धरनों से बने हुए अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक करियर में उनकी यह तीसरी जीत शायद काफी महत्वपूर्ण साबित होगी।

लेकिन क्या डाकू खड्ग सिंह दिल्ली की जनता के साथ न्याय कर पा रहा है? इस प्रश्न पर कोई बात करने को राजी नहीं है। सुल्तान आज भी उसी दशा में बाबा भारती के इन्तजार में है। लेकिन फिर सवाल यह भी है कि सुल्तान इस बार बाबा भारती के पास गया क्यों नहीं? 70 में से 62 सीटें आम आदमी पार्टी के खाते में जाने का तो कम से कम यही संदेश है कि सुल्तान अपने अस्तबल में न होकर एक ऐसे आदमी के साथ चने खा रहा है, जिसने उसे वायदों के सिवाय और कुछ नहीं दिया।

वर्ष 2013 में केजरीवाल के उदय से पहले हर किसी ने यह ठान लिया था कि वह अपना नायक खुद चुनेंगे। यह हुआ भी। लोगों ने सड़क से उठाकर एक आदमी को ख़ुशी-ख़ुशी शासन सौंप दिया। लेकिन… लेकिन खड्ग सिंह की नजर सिर्फ और सिर्फ सुल्तान पर थी। एक दिन डाकू खड्ग सिंह ने बाबा भारती के रास्ते में अपाहिज होने का नाटक किया और बाबा को करुण पुकार लगाई।

अपाहिज ने बाबा से हाथ जोड़कर कहा, “बाबा, मैं दुखियारा हूँ। मुझ पर दया करो” और बदले में बाबा ने अपाहिज को सुल्तान पर बिठा दिया और लगाम अपाहिज के हाथों थमा दी। इसके बाद जो हुआ, उसने बाबा भारती का हृदय चीर दिया। खड्ग सिंह ने घोड़े को बाबा से छुड़ाकर वहाँ से भागने लगा और बाबा से कहा- मैं आपका दास हूँ बाबा! बस घोड़ा वापस न दूँगा।

बाबा ने धीरज से उसे कहा कि अब घोड़े का नाम न ले क्योंकि वह उसका हो चुका। बाबा ने लेकिन खड्ग सिंह से विनती की कि वो इस विषय में कुछ न कहेंगे। उन्होंने कहा- “मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।”

दिल्ली की जनता के साथ जो 2015 के चुनाव में हुआ, वही 2020 के चुनाव में एकबार फिर हो गया है। फ्री की बिजली, मुफ्त मेट्रो, शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर किए गए काल्पनिक दावे, ये सब डाकू खड्ग सिंह के हाथ में सुल्तान की लगाम पकड़ाने के लिए काफी थे।

डाकू खड्ग सिंह ने अपने हर रंग-रूट सुल्तान के सामने उसे रिझाने को दिखाए। कभी हिन्दुओं के प्रतीक चिहृन स्वस्तिक और हिन्दू देवता हनुमान का अनादर करता तो कभी हनुमान चालीसा गाकर सुनाता। कभी अजान गाते सुना गया, तो कभी जीसस क्राइस्ट की आरती गाता।

इस तरह से खड्ग सिंह ने राजनीति में ध्रुवीकरण को एक नई ऊँचाई दे डाली हैं। सुल्तान अब खड्ग सिंह के अस्तबल में सिर्फ इस उम्मीद में बँधा है कि उसे कोई और अस्तबल फिलहाल नजर नहीं आ रहा। सुल्तान का बाबा भारती खुद कहीं रास्ता भटक गया है। तब तक दिल्ली को यह सब देखते रहना होगा। लेकिन इससे अन्य राज्य सबक जरूर ले सकते हैं।

लेकिन, अब कल के दिन अगर कोई निस्वार्थ सेवा भाव के नाम पर बदलाव के लिए नई वाली राजनीति जैसे जुमले गाकर आना भी चाहेगा, तो वह कभी सफल नहीं हो पाएगा। जनता उसे भी दूसरा खड्ग सिंह सोचती रहेगी। दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित के घोटालों की 370 पन्नों वाली फ़ाइल, जो आज तक सामने नहीं आ सकी, जेएनयू से जुड़े मामलों पर कार्रवाई का मामला, सपनों का जन लोकपाल, CCTV, शिक्षा… ये सब मुद्दे आज भी उसी जंतर-मंतर पर खड़े हैं, जहाँ से डाकू खड्ग सिंह सुल्तान को लेने चला था। हमारे देश में राजनीतिज्ञों को बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ हासिल हैं। लेकिन खड्ग सिंह की इस उपलब्धि के आगे सब बौने ही नजर आते हैं।

बाबा भारती आज भी यही कह रहे हैं – “मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। वरना…”

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