ह्रप्पन सभ्यता की अर्थव्यवस्था, समाज और धर्म का वर्णन करें।
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पंजाब, पाकिस्तान में एक पुरातात्विक स्थल है , जो साहिवाल से लगभग 24 किमी (15 मील) पश्चिम में है । साइट रावी नदी के पूर्व पाठ्यक्रम के पास स्थित एक आधुनिक गांव से अपना नाम लेती है जो अब उत्तर में 8 किमी (5.0 मील) तक चलता है। हड़प्पा का वर्तमान गाँव प्राचीन स्थल से 1 किमी (0.62 मील) कम है। हालांकि आधुनिक हड़प्पा में ब्रिटिश राज काल से विरासत रेलवे स्टेशन है , यह आज 15,000 लोगों का एक छोटा चौराहा शहर है।
Indus Valley Civilization में समाज की स्थिति
Indus Valley Civilization में समाज में चार प्रजातियां हुआ करती थीं। ये प्रजातियां भूमध्यसागरीय, प्रोटोआस्ट्रेलियाड, मंगोलाइड और अल्पाइन थीं। इनमें सर्वाधिक आबादी भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोगों की थी। मुख्य रूप से चार वर्गों योद्धा, व्यापारी, विद्वान व श्रमिक में सिन्धु घाटी का समाज बंटा हुआ था। यहां से जो स्त्रियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं, उससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक रहा था। हड़प्पा सभ्यता की यदि बात करें तो यहां के लोगों को युद्ध पसंद नहीं था। ये लोग शांति ही पसंद करते थे। दो प्रकार के भवनों के साक्ष्य हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में मिले हैं। इनके आधार पर यह कहा जाता है कि यहां समृद्ध लोगों का निवास बड़े घरों में होता था, जबकि गरीब, मजदूर एवं दास लोगों छोटे घरों में रह रहे थे।
धार्मिक स्वरूप
सिंधु घाटी सभ्यता में मातृदेवी की पूजा किये जाने के साक्ष्य मिले हैं। पूजा कुमारी के रूप में यहां नारी की पूजा की जाती थी। एक मूर्ति मोहनजोदड़ो से मिली है, जिसमें देवी के सिर एक पक्षी पंख फैलाये बैठा दिखा है। यहां शिवलिंग से मिलती-जुलती आकृति भी मिली है। एक मुहर मिली है, जिस पर योगी की आकृति बनी है। कालीबंगा में हवन कुंड जैसी चीज मिली है।
पशु पूजा, वृक्ष पूजा और जल पूजा के भी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। वैसे, मंदिरों के बारे में कोई जानकारी यहां नहीं मिली है। एक मूर्ति मिली है, जिसमें एक पौधे को स्त्री के गर्भ में प्रस्फुटित होते देखा गया है, जिससे पता चलता है कि इस दौरान पृथ्वी की पूजा की जाती थी। हड़प्पा से लिंग पूजा के सर्वाधिक प्रमाण प्राप्त हुए हैं। कूबड़ वाले सांड को यहां पूजा जाता था।
कई मृदभांड मिले हैं, जिन पर नाग की आकृति दिखी है। इससे सिंधु घाटी सभ्यता में नाग की पूजा किये जाने का भी अनुमान लगाया गया है। राखीगढ़ी, लोथल, कालीबंगा और बनवाली में उत्खन्न के दौरान कई अग्निवेदियां प्राप्त हुई हैं, जिससे पता चलता है कि अग्नि पूजा उस काल में होती थी।