हिरदा भीतरी पावले से लेकर जी हिलाई सोई तक कबीर दास के दोहे sandarbh, prasang., vyakhya sahit
Answers
Answered by
1
Answer:
व्याख्या: अपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो | परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार से बह गये, गुरुपद - पोत में न लगे।
Similar questions