History, asked by Yashbhardwaj9758, 11 months ago

है सुबह कहाँ की सुखद​

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ये नजारा हैअरुणाचल प्रदेश की डोंग वैली की खतरनाक देवांग घाटी का। चाइना-म्यांमार बॉर्डर पर मौजूद ये भारत की ऐसी जगह है, जहां करीब ढाई घंटे पहले ही सूरज निकल जाता है। देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले यहां दिन-रात का चक्र बिलकुल अलग है। दिल्ली में दोपहर तो यहां हो जाती है रात... नए साल पर देशभर के टूरिस्ट यहां सूरज की पहली किरण देखने पहुंचते हैं। दिल्ली में जब दोपहर के चार बजते हैं, वो वक्त यहां रात का है। सूरज निकलने से पहले रात तीन बजे से ही उसकी लालिमा दिखने लगती है।

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इस दिन को अंग्रेजों के उस डर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए जिसके चलते तीनों वीरों को 11 घंटे पहले ही फांसी दे दी गई थी.

भारत के वीर सपूत क्रांतिकारी शहीद-ए-आजम भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव 23 मार्च 1931 में देश की खातिर हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था.

गौरतलब है कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी. भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इस मामले पर मुकदमे के लिए एक विशेष ट्राइब्यूनल का गठन किया, जिसने तीनों को फांसी की सजा सुनाई. तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई. इस मामले में सुखदेव को भी दोषी माना गया था.

शहीद दिवस: भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को देश ऐसे कर रहा है याद

बता दें, केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी. लेकिन इस दिन को अंग्रेजों के उस डर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए, जिसके चलते इन तीनों को 11 घंटे पहले ही फांसी दे दी गई थी.

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