हंसी के अध्ययन के निम्नलिखित में शिक्षामित्रों सबसे उपयुक्त विधि
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तुलनात्मक शिक्षा
किसी देश अथवा विभिन्न देशों की शिक्षात्मक समानताओं, विभिन्नताओं, समस्याओं, एवं विकासक्रमों के क्रमिक, विवेचनात्मक, आलोचनात्मक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन को तुलनात्मक शिक्षा कहते हैं। हैन्स ने राष्ट्रीय शिक्षा सुधार के दृष्टिकोण से विभिन्न देशों की शिक्षाप्रणालियों के विश्लेषणात्मक अध्ययन को तुलनात्मक शिक्षा कहा है। बैरेडे के अनुसार तुलनात्मक शिक्षा, शिक्षा संस्थानों का समाज की पृष्ठभूमि में किया हुआ विश्लेषणात्मक अध्ययन है। वस्तुत: तुलनात्मक शिक्षा की कोई सरल व्याख्या करना कठिन है। शिक्षा का अध्ययन समाज की पृष्ठभूमि में ही वांछनीय है। अत: तुलनात्मक शिक्षा के गहन अध्ययन में देशों की ऐतिहासिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, औद्योगिक, अवस्थाओं का अध्ययन जुड़ा रहता है।
तुलनात्मक शिक्षा के आयाम
कैंडल ने तुलनात्मक शिक्षा के क्षेत्र के दो पहलू बतलाए हैं। एक ओर शिक्षा संस्थान की रचना, शिक्षा का संगठन, सांख्यिक व्योरा, पाठ्यक्रम एवं विषय, अध्यापन कार्य तथ अध्यापन कला; और दूसरी ओर समाजगत आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव है। ये प्रभाव परोक्ष रूप से शिक्षा को निरंतर प्रभावित करते रहते हैं और इतने शक्तिशाली है कि बिना इनके ज्ञान के तुलनात्मक शिक्षा के प्रथम पहलू का ज्ञान शून्य एवं निष्फल होगा। साथ ही समाज की आशाएँ, भविष्य के विकास का मोड़ और झुकाव, एवं समाजगत होनेवाले परिवर्तनों की जानकारी भी आवश्यक है। सूक्ष्म रूप में समाज के चतुर्मुखी अध्ययन तुलनात्मक शिक्षा का क्षेत्र है। समाज का सम्यक् ज्ञान, इतिहास, दर्शन, संस्कृति, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं मनुष्य-शरीर-रचना-शास्त्र के अध्ययन के बिना संभव नहीं है। शिक्षा का तुलनात्मक अध्ययन सभी सामाजिक विज्ञानों से जुड़ा है। इसलिये वर्तमान तुलनात्मक शिक्षावेत्ताओं को अंत:क्षेत्रीय अध्ययन करना आवश्यक है। इसी आधार पर अमरीका में इस विषय का नामकरण "शिक्षा आधार" किया गया है।
महत्व
बैरेडे के अनुसार इस विषय के दो मूल महत्व हैं :
बौद्धिक
चूँकि अन्य ज्ञानक्षेत्रों के समान, यह विषय भी एक शस्त्रीय (academic) विषय है।
व्यावहारिक
चूँकि इसका लक्ष्य शिक्षा-सुधार-माध्यम द्वारा समाज का रूपांतर करना है। इस विषय का अध्ययन वर्तमान अंतरराष्ट्रीय युग में उत्तरोत्तर बल पकड़ता जा रहा है। तुलनात्मक शिक्षा राष्ट्रीय संस्थानों का विस्तृत व्योरा देती है। शिक्षा समाज का दर्पण है और साथ ही सामाजिक कसौटी भी। शिक्षाध्ययन समाज का वास्तविक चित्र ज्ञात करा देता है और उसका मूल्यांकन भी। इस विषय के मुख्य कार्य हैं :