Hindi, asked by salinikpa2018, 5 months ago

हास्य रस पर टिप्पणी लिखो​

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Answered by ayushi159
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Answered by shubhamkumar8137
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हास्य रस का स्थायी भाव हास है। ‘साहित्यदर्पण’[1] में कहा गया है - "बागादिवैकृतैश्चेतोविकासो हास इष्यते", अर्थात वाणी, रूप आदि के विकारों को देखकर चित्त का विकसित होना ‘हास’ कहा जाता है।

पण्डितराज का कथन है - 'जिसकी, वाणी एवं अंगों के विकारों को देखने आदि से, उत्पत्ति होती है और जिसका नाम खिल जाना है, उसे ‘हास’ कहते हैं।"

भरतमुनि ने कहा है कि दूसरों की चेष्टा से अनुकरण से ‘हास’ उत्पन्न होता है, तथा यह स्मित, हास एवं अतिहसित के द्वारा व्यंजित होता है "स्मितहासातिहसितैरभिनेय:।"[2] भरत ने त्रिविध हास का जो उल्लेख किया है, उसे ‘हास’ स्थायी के भेद नहीं समझना चाहिए।

केशवदास ने चार प्रकार के हास का उल्लेख किया है -

मन्दहास,

कलहास,

अतिहास एवं

परिहास

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