हंसते थी उसके जीवन की हरियाली जिनके ट्रेन ट्रेन की आंखों में ही घूमा करता है वह उसकी आंखों का तारा करो कार्टूनों की गाड़ी से जो गया जवानी में मारा कौन किस से बेदखल हुआ और क्यों
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हंसते थी उसके जीवन की हरियाली जिनके ट्रेन ट्रेन की आंखों में ही घूमा करता है वह उसकी आंखों का तारा करो कार्टूनों की गाड़ी से जो गया जवानी में मारा कौन किस से बेदखल हुआ और क्यों
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मूल मराठी कविता- हेरंब कुलकर्णी
हिंदी अनुवाद- विजय प्रभाकर नगरकर
कॉमन मैन
तुम ने वोट पर ठप्पा लगाया और ‘संसद’ का जन्म हुआ
तुम ने उनको राजा मान लिया,वे विधायक,सांसद बन गए,
तुम ने क़ानुन के आगे सिर झुकाया,संसद सार्वभौम हो गई।
तुम ने दफ्तर के चक्कर काट-काट कर लाल फीताशाही से फाँसी लगवा ली,
तुम ने सपनों को पुकारा,उनके एजेंडा ने जन्म लिया
तुम लोकतंत्र के पालनहार,माता-पिता सब कुछ घोषित हो गए ।
उन्होंने तुम्हारा सम्मान किया,तुम वोटर राजा बन गए
वे सभा में भाषण देने लगे,तुम आज्ञापालक श्रोता बन गए
वे कानून बनाने लगे,तुम कोल्हु के बैल बन गए
वे नोटों पर नचवाने लगे,तुम उन के प्रचार में बंदर बन गए।
बम-विस्फोट के ठीकरों में तुम
निर्वासन की भीड में तुम
भुखमरी,कुपोषण की मौत में तुम
उन की घोषणा की ओर ताकने वालों में तुम
आत्महत्या करने वाले किसानों में तुम
बाँध बनने पर सब कुछ खोने वालों में तुम
हर्जाना पाने के लिए चक्कर काटने वालों में तुम
फुटपाथ पर रह कर ‘मेरा भारत महान’ घोषणा देने वालों में तुम
तुम नजर आते हो हमेशा राशन की कतार से मतदान की कतार तक
कभी कर अदा करते हुए,कभी लाल फीताशाही के चर्खे में घुटते हुए
लोकल में टंगे हुए, भीड में तितर-बितर बिन चेहरा
तुम बगुलों के बँगलों पर याचना करते हो,वे मस्ती में तुम्हें छेडते हैं
तुम्हारे ‘विश्व दर्शन’ से मेरा अर्जुन करने वाले
हे असाधारण “साधारण” मानव!