हाशियाई समूह के लोग अपने अधिकारों की रक्षा कैसे
कर सकते हैं-
Answers
Answer:
दलितों और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा
हाशियाई समुदायों को भेदभाव और शोषण से बचाने के लिए नीतियों के अलावा हमारे देश में कई कानून भी बनाए गए हैं। जैसे, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत स्थानीय थाने में मामला दर्ज करा सकते हैं
Explanation:
हाशियाकारण से निपटना
मौलिक अधिकारों का उपयोग
मौलिक अधिकार हमारे संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हमारे समाज व व्यवस्था को लोकतान्त्रिक बनाते हैं।
ये अधिकार सभी भारतीयों को समान रूप से उपलब्ध है।
हाशियाई तबके के लोग दो तरह से उपयोग में लाते हैं।
पहला, सरकार को अपने साथ हुये अन्याय पर ध्यान देने के लिए मजबूर करते हैं।
तथा दूसरा, सरकार इन क़ानूनों को लागू करें।
कई बार हाशियाई तबकों के संघर्ष के वजह से ही सरकार को मौलिक अधिकारों कि भावना के अनुरूप नए कानून बनाने पड़े हैं।
संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता या छुआछूत का उन्मूलन किया जा चुका है।
जिसका अर्थ है कोई भी व्यक्ति दलितों को पढ़ने, मंदिरों में जाने और सार्वजनिक सुविधाओं का इस्तेमाल करने से नहीं रोक सकता।
संविधान के अनुच्छेद 15 में भी भारत के किसी भी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधारपर भेदभाव नहीं किया जाएगा। समानता के अधिकार का हनन होने पर दलित इस प्रावधान का सहारा लेते हैं।
अल्पसंख्यक समुदाय के शैक्षणिक व सांस्कृतिक अधिकारों पर ज़ोर दिया गया जिसका उद्देश्य है कि, इन समूहों की संस्कृति पर न तो बहुसंख्यक समुदाय की संस्कृति का वर्चस्व हो और न ही वह नष्ट हो।
दलितों और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा
हाशियाई समुदायों को भेदभाव और शोषण से बचाने के लिए नीतियों के अलावा हमारे देश में कई कानून भी बनाए गए हैं। जैसे, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत स्थानीय थाने में मामला दर्ज करा सकते हैं अगर को आपको दबाना चाहता है तो।
यह कानून 1989 में दलितों तथा अन्य समुदायों की माँगों के जवाब में बनाया गया था। बहुसंख्यक वर्ग द्वारा हाशियाई वर्ग पर अत्याचार व दुर्व्यवहार और अपमानित करने पर रोक लगाने के लिए ये कानून बनाया गया।
क्योंकि, अगर दलितों, आदिवासियों व हाशियाई लोगों पर अगर दुर्व्यवहार होगा या उन्हे प्रताड़ित किया जाएगा तो उनके लिए संविधान मे कड़े-से-कड़े कानून पास हुआ है जिससे इस वर्ग को प्रताड़ित करने से रोका जा सके।
किसी भी अधिकार या कानून या नीति को कागज पर लिख देने का यह मतलब नहीं होता कि वह अधिकार या कानून या नीति वास्तव में लागू हो चुका है।
इसको प्रावधान में लाने के लिए लगातार कोशिश करने चाहिए।
बराबरी, इज्जत और सम्मान कि चाह कोई नयी बात नहीं है। यह बात पूरे इतिहास में विभिन्न रूपों में दिखाई देती है।
इसी प्रकार, लोकतांत्रिक समाज में भी संघर्ष, लेखन, सौदेबाजी और संगठनिकता की प्रक्रियाएँ जारी रहना चाहिए।