हिंदी भाषा का कौन सा रूप मानक हिंदी के रूप में स्वीकार किया गया है?
पूर्वी
पहाड़ी हिंदी
खड़ीबोली
पश्चिमी हिंदी
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खडी बोली is the correct answer...hope it helps!
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हिन्दी का मानक रूप खड़ी बोली से विकसित हुआ है। . पूर्वी हिन्दी. के अंतर्गत विकसित बोलियाँ अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी है।
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हिंदी भाषा का कौन सा रूप मानक हिंदी के रूप में स्वीकार किया गया है?
पूर्वी
पहाड़ी हिंदी
खड़ीबोली
पश्चिमी हिंदी
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हिंदी भाषा का कौन सा रूप मानक हिंदी के रूप में स्वीकार किया गया है?
पूर्वी
पहाड़ी हिंदी
खड़ीबोली
पश्चिमी हिंदी
Explanation:
मानक हिंदी से तात्पर्य, खड़ी बोली से विकसित और नागरी लिपि में लिखी जाने वाली उस मानक भाषा से है जिसे उच्च हिंदी या परिनिष्ठित हिंदी भी कहा जाता है। यही हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा, राजभाषा तथा संपर्क भाषा है।
मानक भाषा को कई नामों से पुकारते हैं। इसे कुछ लोग 'परिनिष्ठित भाषा' कहते हैं और कई लोग 'साधु भाषा'। इसे 'नागर भाषा' भी कहा जाता है।
इसके अंतर्गत पाँच बोलियाँ हैं - खड़ी बोली, हरियाणी, ब्रज, कन्नौजी और बुंदेली।
भाषा का क्षेत्र देश, काल और पात्र की दृष्टि से व्यापक है। इसलिये सभी भाषाओं के विविध रूप मिलते हैं। इन विविध रूपों में एकता का प्रयत्न किया जाता है और उसे मानक भाषा कहा जाता है। हिन्दी में 'मानक भाषा' के अर्थ में पहले 'साधु भाषा', 'टकसाली भाषा', 'शुद्ध भाषा', 'आदर्श भाषा' तथा 'परिनिष्ठित भाषा' आदि का प्रयोग होता था।
किसी भी क्षेत्र प्रदेश में शिक्षा, तकनीकी, कानून, औपचारिक स्थितियों, लेखन, प्रशासन, संबंधी गतिविधियों तथा शिष्ट समाज में प्रयुक्त करने हेतु मानक भाषा का महत्वपूर्ण स्थान हैं। यह न केवल सुसंस्कृत व साधुभाषा है बल्कि हमारी संप्रेषण क्षमता को भी बढ़ाती है।
मानक के सभी पर्यायवाची शब्द आदर्श, प्रतिमान, कसौटी। आदि हैं।
मानक भाषा का अर्थ हिन्दी भाषा के उस स्थिर रूप से है जो अपने पूरे क्षेत्र में शब्दावली तथा व्याकरण की दृष्टि से समरूप है। इसलिए वह सभी लोगों द्वारा मान्य है, सभी लोगों द्वारा सरलता से समझी जा सकती है। अन्य भाषा रूपों के मुकाबले वह अधिक प्रतिष्ठित है। मानक हिन्दी भाषा ही देश की अधिकृत हिन्दी भाषा है।
मानक भाषा के तत्व-
. ऐतिहासिकता - मानक भाषा का गौरवमय इतिहास तथा विपुल साहित्य होना चाहिए।
. मानकीकरण - भाषा का कोई सुनिश्चित और सुनिर्धारित रूप होना चाहिए।
. जीवन्तता - भाषा साहित्य के साथ-साथ विज्ञान, दर्शन आदि क्षेत्रों में प्रयुक्त की गई हो तथा नवाचार में पूर्ण रूप से सक्षम हो।
हिंदी की बोलियों की संख्या सत्रह मानी जाती है, परन्तु कुछ विद्वान इसकी संख्या अठारह अथवा उन्नीस मानते हैं
#SPJ3