हिंदी भाषा के मानकीकरण से क्या अभिप्रय हे
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Answer:मानक का अभिप्राय है–आदर्श, श्रेष्ठ, परिनिष्ठित।
भाषा का जो रूप उस भाषा के प्रयोक्ताओं के आलावा अन्य भाषा भाषियों के लिए आदर्श होता है, जिसके माध्यम से वे सीखना चाहते है, जिस भाषा का रूप का व्यवहार, शिक्षा, सरकारी काम काज एवं सामाजिक, सांस्कृतिक आदान–प्रदान में समान स्तर पर होता है, वह उस भाषा का मानक रूप कहलाता है।
मानक भाषा किसी देश अथवा राज्य की वह परिनिधि तथा आदर्श भाषा होती है जिसका प्रयोग वहां के शिक्षित वर्ग द्वारा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, व्यापारिक व वैज्ञानिक तथा प्रशसनिक कार्यों में किया जाता है।
मानकीकरण (मानक भाषा के विकास) के तीन सोपान बोली -> भाषा -> मानक भाषा
किसी भाषा का बोल–चाल के स्तर से ऊपर उठकर मानक रूप ग्रहण कर लेना उसका मानकीकरण कहलाता है।
प्रथम सोपान : बोली : आपसी बोल–चाल में प्रयुक्त होने वाली भाषा है।
दूसरा सोपान : भाषा : वह भाषा जिसका प्रयोग लिखित रूप में होता है जैसे पत्राचार, शिक्षा, व्यापर, प्रशासन, आदि।
तृतीय सोपान : मानक भाषा : यह भाषा का वह स्तर है जब भाषा के प्रयोग का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो जाता है। वह एक आदर्श रूप ग्रहण कर लेती है।
उसका परिनिष्ठित रूप होता है उसकी अपनी शैक्षणिक, वाणिज्यिक, साहित्यिक, शास्त्रीय, तकनीक एवं कानूनी शब्दावली होती है। अर्थात मानक भाषा बन जाती है।
मानकीकरण की दिशा में उठाये गये कदम:
1. राजा शिव प्रसाद सितारे हिन्द ने क ख ग ज फ पाँच अरबी ध्वनियों के लिए चिन्हों के नीचे नुक्ता लगाने रिवाज आरम्भ किया।
2. भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन‘ के जरिए खड़ी बोली को व्यवहारिक रूप प्रदान करने का प्रयास किया।
3. अयोध्या प्रसाद खत्री में प्रचलित हिंदी को ठेठ हिंदी की संज्ञा दी, उसका प्रचार किया, आंदोलन चलाये।
4. हिंदी भाषा के मानकीकरण की दृष्टि से द्विवेदी युग सबसे महत्त्वपूर्ण रहा था। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका के जरिए खड़ी बोली हिंदी के प्रत्येक अंग को गढ़ने संवारने का कार्य किया।
5. छायावादी युग में हिंदी के मानकीकरण की दिशा में कोई आन्दोलनात्मक प्रयास तो नही हुआ किंतु भाषा का मानक रूप अपने आप स्पष्ट होता चला गया।
6. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी के मानकीकरण पर नए सिरे से विचार विमर्श शुरू हुआ क्योंकि संविधान ने इसे राज भाषा के पद पर प्रतिष्ठित किया।
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