हिंदी भाषा पर एक अनुच्छेद लिखिए
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वैदिक संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश आदि पड़ावों से गुजरकर हिन्दी भारतवासियों के दिल की धड़कन बनी । देश की प्रगति के गर्भ में राष्ट्र भाषा हिन्दी का विशेष महत्व रहा है । हालांकि सभी सम्मानित भाषाएं संस्कृत भाषा की देनदार हैं, जिस देश की अपनी कोई भाषा नहीं है वह देश गूंगा व बहरा है ।
एक समय था जब देश में संवाद की भाषा देववाणी अर्थात संस्कृत थी । यदि भारत की भाषाओं का इतिहास उठाकर देखें तो पता चलता है कि हिन्दी किसी न किसी रूप में अपनी सहोदर भाषाओं को अपना सहयोग प्रदान करती रही है । समय के साथ-साथ भाषा ने भी करवट बदली और कार्यालयों में कार्यों का माध्यम विदेशी भाषा अंग्रेजी बन गयी ।
यह क्रम सदियों से चल रहा है । अंग्रेजी बोलकर हम स्वयं को महान बनने का भ्रम पाले बैठे हैं । अंग्रेज जानते थे कि किसी भी देश को लम्बे समय तक गुलाम बनाकर रखने के लिए जरूरी है कि वहां की भाषा को छीनकर अपनी भाषा और चिंतन थोप दिया जाय ।
विश्व के सभी देशों की अपनी एक भाषा ही ऐसी है जो सम्पूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने की क्षमता रखती है । हिन्दी पूर्णरूप से सक्षम और समर्थ भाषा है । जहां तक हिन्दी बोलने वालों का प्रश्न है तो हिन्दी आज विश्व की नम्बर एक भाषा है ।
हालांकि विश्व के कुछ देशों ने यह प्रचार करने का प्रयास किया कि अंग्रेजी ही विश्व की श्रेष्ठ व बड़ी भाषा है लेकिन उनके इस प्रचार में दम नहीं है क्योंकि अंग्रेजी भाषा अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा के कुछ हिस्सों में ही बोली जाती है ।
इस हिसाब से उसे श्रेष्ठ और बड़ी भाषा कैसे माना जा सकता है । इनमें भी ब्रिटेन में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां के लोग अंग्रेजी नहीं समझ पाते यदि समझ भी जाते हैं तो बोल नहीं पाते । ब्रिटेन में अंग्रेजी से ज्यादा बेला, स्काटिश, आयरिश भाषाएं बोली जाती हैं । इसी तरह अमरीका में लातीनी लोग हिस्पानी बोलते हैं ।
हमारे संविधान में हिन्दी को भारत की संघ भाषा कहा गया है । उसे राज भाषा का दर्जा भी दिया गया है लेकिन सरकार का ज्यादातर काम हिन्दी के बजाय अंग्रेजी में हो रहा है । अकेले भारत में सत्तर करोड़ से ज्यादा लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं । भारत के अलावा बंग्लादेश, नेपाल, भूटान तिब्बत, बर्मा, अफगानिस्तान, फिजी, मारिशस, गुयाना, सूरीनाम, ट्रिनीडाड जैसे देशों में भी हिन्दी बोली जाती है ।
इसके अलावा विश्व भर में फैले करीब दो करोड़ लोग भी हिन्दी बोलते हैं । हिन्दी भाषियों की संख्या इस प्रकार करीब एक अरब है । आज विश्व के करीब 126 देशों में हिन्दी विषय का अध्ययन अध्यापन होना हिन्दी भाषा की लोकप्रियता, वैज्ञानिकता एवं सामरस्य चिंतन का प्रमाण है । हिन्दी की शब्द सम्पदा लगभग सात लाख शब्दों की है जबकि अंग्रेजी की तीन ही लाख है ।
आज देश को स्वतंत्र हुए पचपन वर्ष से अधिक हो गये हैं लेकिन हम अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए आज भी अंग्रेजी के मोहताज हैं । यह सब हमारी मानसिक दासता का प्रमाण है । वर्तमान परिवेश में घुटन, टूटन, बिखराव एवं जो टकराव दृष्टिगोचर होता है उसका स्पष्ट कारण राष्ट्र भाषा हिन्दी की उपेक्षा किया जाना है ।
समाज में भाषा को लेकर जो असंतोष विघटन व भेदभाव की खाई खुदती जा रही है । आगे चलकर इसे पाटना मुश्किल ही नहीं घातक भी होगा । एक तरफ अंग्रेजी के पक्षधरों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी तरफ बड़ी संख्या में वे लोग हैं जो अंग्रेजी के पास तक नहीं पहुंच सकते । महानगरों की गली-कूचों में अंग्रेजी सीखने-सिखाने की दुकानें दिन-ब-दिन खुलती जा रही हैं ।