हिंदी गद्य का विकास पर निबन्ध | Write an essay on The Development of Hindi Prose in Hindi
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“हिंदी गद्य का विकास”
हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास पिछले एक सहस्त्र वर्ष का इतिहास है। जिसमें अपभ्रंश या प्राचीन हिंदी से आरंभ होकर शौरसेनी, अपभ्रंश, ब्रजभाषा, अवधी राजस्थानी आदि का साहित्य उपलब्ध होता है। हिंदी भाषा के गद्य का प्रारंभ विक्रमी संवत् 14वीं शताब्दी से माना जाता है।
राजस्थानी गद्य-> राजस्थानी भाषा में लिखे गए गद्य यदि ध्यान दिया जाए तो एक बात सामने आती है, वह दानपत्र पट्टी और परवानों पर अंकित गद्य लेख। यद्यपि इन में अपभ्रंश की अधिकता है किंतु भाषा का रूप अति शुद्ध गद्यात्मक है और इसका लिपि काल भी 13वीं शताब्दी के प्रथम चरण का है। राजस्थानी के प्राचीन गद्य के प्रारंभिक विकास में जैन विद्वानों का विशेष हाथ रहा है I जिनकी छोटी-छोटी रचनाओं में शहज और स्पष्ट भाषा में जैन सिद्धांत निरूपण मिलता है।
ब्रजभाषा गद्य-> ब्रजभाषा गद्य के प्रारंभ के विषय में विद्वानों के ज्यादा मतभेद नहीं है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल मिश्र, बंधु, डॉ रामकुमार वर्मा आदि ने गोरख पंथी साधुओं के गद्य को ही ब्रजभाषा के प्रसंग में प्रारंभिक गद्य माना है। काशी नगरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्ट के अनुसार गोरखनाथ जी का एक गद्य ग्रंथ भी है जिसमें गद्य का व्यवस्थित रूप मिलता है। इसका रचनाकाल अधिकतर विद्वान संवत् 1343 के समीप मानते हैं। ब्रजभाषा गद्य का व्यापक रूप से प्रयोग भक्ति काल में प्रारंभ हुआ । इसका प्रमाण वल्लभ संप्रदाय का वार्ता साहित्य तथा राधा बल्लभ संप्रदाय के महात्मा ध्रुव दास द्वारा लिखित गद्य ग्रंथ हैं।
खड़ी बोली गद्य -> खड़ी बोली गद्य का प्रारंभ 19वीं शताब्दी से माना जाता है। लेकिन इसके विषय में विद्वानों का आपस में मतभेद है। पटियाला के रामप्रसाद निरंजनी द्वारा भाषा योग वशिष्ठ ग्रंथ साफ-सुथरी खड़ी बोली में मिलता है ।जिसकी साधु एवं सुव्यवस्थित भाषा हमें आश्चर्य में डाल देती है।
दक्खिनी हिन्दी -> दक्खिनी हिंदी, हिंदी साहित्य के इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है इसके अध्ययन के बिना समस्त हिंदी साहित्य अधूरा है। खड़ी बोली पर आधारित जो आज हिंदी का विस्तृत रूप है और जिसे भारत सरकार ने राज्य भाषा के रूप में स्वीकार किया है उसका विकास कभी दक्खिनी हिंदी के रूप में हुआ था।