Hindi, asked by saisankeerth459, 14 days ago

हिंदी के जाने-माने लेखक श्री प्रकाश का जीवन परिचय दीजिए।​

Answers

Answered by renugoyal96709
15

Answer:

पूरा नाम श्रीप्रकाश

जन्म 3 अगस्त, 1890

जन्म भूमि वाराणसी, उत्तर प्रदेश

मृत्यु 23 जून, 1971

मृत्यु स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश

अभिभावक पिता- डॉ. भगवान दास

नागरिकता भारतीय

प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता

पार्टी कांग्रेस

पद महाराष्ट्र के राज्यपाल, असम के राज्यपाल, (1956 से 1962 तक)

शिक्षा बैचलर ऑफ़ लॉ

विद्यालय कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, लन्दन

जेल यात्रा सन 1930 के 'नमक सत्याग्रह' में, 1932 के 'करबंदी आंदोलन' में और 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में उन्होंने जेल की सजाएँ भोगीं।

पुरस्कार-उपाधि पद्मविभूषण

संपादन सी. वाई. चिंतामणि के साथ 'लीडर' में और फिर मोतीलाल नेहरू के पत्र 'इंडिपेंडैट' में भी श्रीप्रकाश ने कार्य किया।

विशेष अच्छे वक्ता, लेखक और देशभक्त श्रीप्रकाश की एक और विशेषता थी कि वे चाहे जिस पद पर रहे हों, लोगों के पत्रों का स्वयं उत्तर देते थे।

अन्य जानकारी भारत की स्वतंत्रता के बाद उन्हें 1947 में भारत का प्रथम उच्चायुक्त बना कर पाकिस्तान भेजा गया। 1949 में असम के राज्यपाल रहने के बाद वे कुछ समय तक केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे।

श्रीप्रकाश (अंग्रेज़ी:Shriprakash; जन्म- 3 अगस्त, 1890, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 23 जून, 1971) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता थे। वे पाकिस्तान में भारत के प्रथम उच्चायुक्त थे, जिन्होंने 1947 से 1949 तक देश की सेवा की। उन्हें एक अच्छे वक्ता और लेखक के रूप में भी जाना जाता था। वे सन 1949 से 1950 तक असम, 1952 से 1956 तक मद्रास (आधुनिक चेन्नई) और 1956 से 1962 तक महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे थे। देश सेवा और सच्ची निष्ठा के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1957 में 'पद्मविभूषण' से सम्मानित किया था।

Answered by singhrangareashi
0

Answer:

रकाश शुक्ल, अपराधी और माफ़िया था। उसे राजनेता अपने विरोधियों को सुपारी देकर समाप्त करने के लिए काम में लेते थे।[1] 22 सितम्बर 1998 को लगभग २५ वर्ष की आयु में ग़ाज़ियाबाद में उसको पुलिस मुठभेड़ में मारा गया।

Explanation:

प्रकाश शुक्ल का जन्म मामखोर गाँव में हुआ था जो गोरखपुर के निकट हाटा बाज़ार में है। बयान किया गया है कि वह अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में पहलवान रहा करता था।

जुर्म की दुनिया में प्रवेश

१९९३ में शुक्ल ने राकेश तिवारी नाम के एक व्यक्ति की हत्या कर दी यह शुक्ल के द्वारा की गई पहली हत्या थी जिससे भयभीत होकर वह बैंकॉक भाग गया।

वापसी और पेशेवर जुर्म की दुनिया में प्रवेश

शुक्ल लौटकर मोकामा, बिहार के गुंडे सूरज भान की गैंग का सदस्य बन गया और बिहार की राजनीति में सक्रिय हो गया [1][3]

दहशत का माहौल

एक समय शुक्ल उत्तर प्रदेश और उत्तर बिहार का खतरनाक और बेरहम गैंगस्टर बन गया। वह राजनेताओं और व्यापारियों के लिए सरदर्द बन गया और पुलिस पर उसके खिलाफ़ कार्यवाही करने के लिए ज़ोर पड़ने लगा।

प्रमुख राजनेता की हत्या

१९९७ में लखनऊ में शुक्ल ने वीरेन्द्र साही की हत्या कर दी जो एक राजनेता और राज्य अंडरवर्ल्ड के सदस्य थे। इसके बाद आशंका जताई गई थी कि हरि शंकर तिवारी की भी हत्या कर देगा जो साही के विरोधी थे क्योंकि स्वयं चिल्लुपार विधान सभा पर क़ब्ज़ा जमाना चाहता था।[1][3][4]

प्रमुख व्यापारी की हत्या

२६ मई १९९८ को शुक्ल ने कुनाल रस्तोगी का अपहरण कर दिया जो एक व्यापारी का बेटा था। यह घटना उसने लखनऊ के वनस्पति उद्यान से अंजाम दी। बच्चे के पिता ने जब बचाव की कोशिश की तो उसने उसकी हत्या कर दी। आरोप है कि गैंग ने ५० मिलियन रुपिये लेकर बच्चे को छोड़ा। [1][5][6]

बिहार के मंत्री की हत्या

जून १९९८ में शुक्ल ने बृज बिहारी प्रसाद की हत्या कर दी जो बिहार के एक मंत्री थे। वे पटना के एक अस्पताल में इलाज के लिए थे। बृज बिहारी प्रसाद पर विधायक देवेंद्र नाथ दुबे की हत्या करने का आरोप था। विधायक देवेंद्र नाथ दुबे और श्रीप्रकाश शुक्ल बहुत अच्छे मित्र थे। ।[1]

मुख्य मंत्री की हत्या का प्रयास

साक्षी महाराज, जो फर्रुखाबाद के सांसद थे, यह दावा किए कि शुक्ल ने उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री कल्याण सिंह की हत्या के लिए ६० मिलियन रुपिये की सुपारी ली है। परन्तु महाराज ने जानकारी के स्रोत या देने वाले का नाम नहीं बताया।[7]

बिहार के विधायक की हत्या

बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के थोड़े ही समय के बाद शुक्ल ने अजीत सरकार की कथित रूप से हत्या कर दी जो पूर्णियां के विधायक थे।[1]

पुलिस टीम का गठन

अप्रेल १९९८ में उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक विशेष कार्य बल (Special Task Force - STF) का गठन किया ताकि राज्य ४३ कुख्यात अपराधियों को या तो पकड़ा जाए या मार दिया जाए। सूची में शुक्ल भी था।[3]

मृत्यु

८ और १५ सितम्बर १९९८ को प्रकाश शुक्ल के बारे में दो एपिसोड अपराध पर आधारित शो इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड पर प्रस्तुत किए गए थे। शो के मेज़बान सुहैब इल्यासी ने दावा किया है कि उसे शुक्ल के माध्य से धमकी भरे कॉल आए। उन्होंने यह भी दावा किया कि एक अनामक कॉलकर्ता ने उन्हें १० सितम्बर १९९८ को सूचना दी कि शुक्ल के गैंग के लोग एम्स दिल्ली के निकट डाइवू सिएलो में देखे जा सकते हैं। २१ सितम्बर १९९८ को सूचना दी गई कि शुक्ल गाज़ियाबाद में डाइवू सिएलो में देखा जा सकता है। यह सूचनाएँ दिल्ली और उत्तरप्रदेश पुलिस को दी गई।[2]

२२ सितम्बर १९९८ को शुक्ल को उत्तर प्रदेश पुलिस के विशेष कार्य दल द्वारा गाज़ियाबाद की एक बहु-मंज़िलीय परिसर के बाहर गोली मार दिया। दिल्ली के वसंतकुंज में शुक्ल छिप रहा था। वह गाज़ियाबाद में अपनी महिलामित्र से मिलने आया था। वह पालम हवाई अड्डे के रास्ते बचकर रांची जाना चाहता था, जहाँ उसके हथियारों का विक्रेयता सूरज भान रहता था। [1][2][3] विशेष कार्य बल के गठन तक जाँच पर १० मिलियन रुपिये खर्च हुए थे और उसे पकड़ने के लिए पटना, लखनऊ और दिल्ली के बीच १,००,००० किलोमीटर की हवाई यात्रा शुक्ल को पकड़ने के लिए यो चुकी थी। [1] उसे मुख्य रूप से उसके फ़ोन नम्बर से पकड़ लिया गया था। शुक्ल हर सप्ताह अपना सिम कार्ड बदलता था। परन्तु अंतिम सिम का उसने एक सप्ताह से अधिक समय के लिए प्रयोग किया था। [3] गोली-बारी के स्थल से प्राप्त मोबाईल फ़ोन और डायरी से उसके राजनेताओं से सम्पर्क के प्रमाण मिले।[8]

अनुलवन

उसकी मृत्यु के पश्चात् विशेष कार्य बल ने पाया कि शुक्ल विभिन्न राजनेताओं से जुड़े हुये थे जिनमें कल्याण सिंह सरकार और भारतीय पुलिस सेवा एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य भी शामिल थे। उसे बचाने के लिए इन्होंने काफी सहायता भी की। कुछ ने शुक्ल से इसके लिए धन भी लिया।[1] 5 नवम्बर 1998 को विशेष कार्य बल के एक सदस्य प्रीतम सिंह को शुक्ल के गिरोह के एक सदस्य ने मार दिया

Similar questions