हिंदी के वर्ण व्यवस्था पर विचार कीजिए
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Answer:
वर्ण-व्यवस्था का अर्थ हैः- गुण, कर्म अथवा व्यवसाय पर आधारित समाज का चार मुख्य वर्णों मे विभाजन के आधार पर संगठन।
Explanation:
सांख्य दर्शन के अनुसार " वर्ण का अर्थ रंग भी बताया गया है। वैदिक युग मे आर्यों का विभाजन, सम्भवतः " आर्य वर्ण " तथा दास वर्ण रहा था।
वर्ण व्यवस्था का महत्व या गुण
1. वैयक्तिक उन्नति का अवसर : वर्ण व्यवस्था बहुत खुली व्यवस्था है जिसमे एक व्यक्ति को अपनी क्षमता व गुणों के आधार पर अपनी स्थिति उच्च करने का अधिकार और अवसर होता है।
2. शक्तियों का विकेन्द्रीकरण : सामाजिक जीवन मे चार प्रमुख शक्तियाँ कार्य करती है-- ज्ञान शक्ति, राज्य शक्ति, अर्थ शक्ति और श्रम श्रक्ति। समाज मे चारों शक्तियों के केन्दीयकरण का अर्थ होता है- निरंकुशता और शोषण। इनके अधिक बिखराव से सामाजिक संगठन और प्रगति मे बाधा पहुँचाने लगती है। आवश्यकता इस बात की होती है कि समाज मे इन शक्तियों के केन्द्रीयकरण को रोका जाय और इनके अधिक बिखराव को भी।
3. श्रम विभाजन और विशेषीकरण : - वर्ण-व्यवस्था सामाजिक श्रम विभाजन का एक अच्छा आदर्श प्रस्तुत करती है। अध्ययन व अध्यापन, सुरक्षा व प्रशासन, उत्पादन व व्यापार तथा इन सभी कार्यों मे आवश्यक शरीरिक श्रम सम्पादन के रूप मे वर्ण व्यवस्था समाज को क्रमशः चार प्रमुख वर्णों, बुद्धिजीवी, शासक, व्यापारी और शारीरिक श्रमजीवी मे विभाजत करती है।
4. समाज मे संघर्षों को मिटना : - वर्ण व्यवस्था के कारण समाज मे सघर्ष की सम्भावना नही होती। इसका कारण यह है कि प्रत्येक वर्ण के कार्य निश्चित होते है। सभी व्यक्ति अपने लिए निर्धारित कार्य करते रहते है। अतः सामाजिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहती है।
5. सामाजिक अनुशासन : वर्ण व्यवस्था मे हर एक वर्ण के लिए पृथक धर्म का प्रावधान है, जिसका अनुसरण करना प्रत्येक व्यक्ति का आवश्यक कर्तव्य होता है। इससे समाज मे अनुशासन रहता है।