Hindi, asked by machhindravasave, 9 months ago

हिंदी कहाणी लेखन सुंदर वन ... इद्राचे आगमन....

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Answered by SimrenLalwani
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एक नगर का सेठ अपार धन सम्पदा का स्वामी था। एक दिन उसे अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई। उसने तत्काल अपने लेखा अधिकारी को बुलाया और आदेश दिया कि मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति का मूल्य निर्धारण कर ब्यौरा दीजिए, पता तो चले मेरे पास कुल कितनी सम्पदा है।

घड़ी दो के टनटनाने की आवाज़ कर रही थी और संजय नींद के आगोश में जा चुका था । किन्तु आदित्य करवटें बदलते हुए उठ खड़ा हुआ । और सिगरेट जलाकर बरामदे में आराम कुर्सी पर बैठ गया । एकाएक धुएँ के उस ओर चेहरा झलकता है । फिर शोर करती ट्रेन प्लेट फॉर्म से छूटती प्रतीत होती है । और एक ही पल में वह अपने अतीत में चला जाता है ।

तस्वीर वही और बात वही है

'बेबसी' मुस्कुराती है

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मैं तो पुलिस का डंडा हूँ,

हाल ही में जारी एन.एस.एस.ओ के ६८ वें दौर (२०११-१२) के उपभोग व्यय सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अमीर दस फीसदी लोगों और सबसे गरीब दस फीसदी लोगों की आय के बीच का अनुपात २००४-५ के ४.९ से बढ़कर ६.९ हो गया है जबकि शहरी क्षेत्रों में सबसे अधिक आय वाले दस फीसदी लोगों और सबसे कम आय वाले दस फीसदी

बल्कि ये महत्वपूर्ण है की ये लोकपाल कही भ्रष्ट ना हो जाए

कमोबेस यही स्थिती बिहार की भी है. वहां भी अपने विरुद्ध उठ रही हर आवाज को राजग सरकार क्रूरता से कुचल देनें पर आमादा है. और इन परिस्थितियों में राजग सरकार को आईना दिखाने में सक्षम लोग अथवा बुद्धिजीवी या तो आपसी राग-द्वेष डूबे हुए है या फिर जाति-बिरादरी के नाम पर बंटकर बिहार की तानाशाही सरकार और उसके कर्ताधर्ता के इस नंगे नाच को देखकर भी चुप हैं. दिनांक १६ सितंबर २०११ को बिहार विधान परिषद नें अपने दो कर्मचारियों को केवल इस लिए निलंबित कर दिया क्योकि वे फेसबुक पर परिषद के अधिकारियों असंवैधानिक भाषा का प्रयोग करते है तथा उनके बारे में ‘दीपक तले अँधेरा’ जैसी लोकोक्ति का इस्तेमाल करते हैं और लिखते हैं कि बिहार विधान परिषद जिसकी मै नौकरी करता हूँ वहां विधानों की धज्जियाँ उडाई जाती हैं. अरुण नारायण के निलंबन के लिए भी कुछ इसी तरह के बहाने गढे गए. हिन्दी फेसबुक पर कवी मुसाफिर बैठा अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं. और अरुण नारायण नें पिछले एक महीने से फेसबुक पर अपना एकाउंट बनाया था. उपरोक्त टिप्पणियों का जिक्र इन दोनों को निलंबित करते हुए किया गया है. फेसबुक पर टिप्पणी करने के कारण संभवतः हिंदी प्रदेश का पहला उदाहरण है. मुसाफिर बैठा और अरुण नारायण ए दोनों हिंदी साहित्य की दुनिया के परिचित नाम हैं. मुसाफिर बैठा ‘हिंदी की दलित कहानी’ पर पीएचडी की है तथा अरुण नारायण का बिहार की पत्रकारिता पर एक महत्वपूर्ण शोधकार्य है. मुसाफिर और अरुण के निलंबन के तीन-चार महीने पहले बिहार विधान परिषद से उर्दू के कहानीकार सैयद जावेद हसन को नौकरी से निकाल दिया गया उनके ऊपर भी कुछ इसी तरह के आरोप लगाये गए थे. वस्तुतः इन तीनों लेखक कर्मचारियों का निलंबन, पत्रकारों को खरीद लेने के बाद बिहार सरकार द्वारा काबू में नहीं आने वाले लेखकों व पत्रकारों के विरुद्ध की गई है. बड़े अख़बारों और चैनलों को चांदी के जूते उपहार में देकर अपना पिट्ठू बना लेना तो बिहार सरकार के बस में है लेकिन अपनी मर्जी के मालिक और बिंदास लेखकों पर नकेल कसना राजग सरकार के लिए संभव नहीं हो रहा था परिणामस्वरूप इनको निलंबित किया गया.

दर्द चेहरा, छुपा ना सका

चौथी फ़सल

ऐसे कदम आर्थिक अस्थिरता के दौर में भारी खतरों से भरे हुए हैं. जबकि लातिन अमेरिका जैसे अधिकतर दूसरे देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने के लिए सुरक्षात्मक दीवारें खड़ी कर रहे हैं, भारत बेतुके रूप से इसे और अधिक खोलने को आमादा दिख रहा है.

ठेल दिया था

रोज नयी यादों

बस आगाह करना चाहती हूँ एक औरत को

गांधी परिवार के ट्रस्ट को मुंबई की 90 करोड़ की बेशकीमती जमीन मुफ्त

अगर मेरी भगती में यकसू रहे -मेरा ज्ञान हो ,और मुझे देख ले ,

क्या बताएं कि किन मुश्किलों में

अब कहाँ मिलेगी हरी घास की नर्म चादर

आओ मुकाबला करें।

बोलो आओगे क्या .. ?

"माँ माँ, ये शर्म क्या चीज़ होती है?"

पिया है दूध माँ का तो नज़र के सामने भी आ

उस दिन शायद कुछ ज्यादा ही तू तू मैं मैं हो गई थी बाप बेटे में. बेटा गुस्से में तो बाप दुःख से भरा था. कालजे की कोर को इसीलिए बड़ा किया था कि इस उम्र में रोटियों के लिए भी वो बेटे को भारी लगने लगेगा. एक पल के लिए सोचा कहीं चला जाऊँ, पर........ कहाँ.आस पास के गाँव या चित्तोड भीलवाडा के सिवा और कहीं गया भी तो न था.

विकास – अब लाद के ले जाएंगे घर।

अम्मा मेरे शरीर पर फिराती हैं बंद मुट्ठी

इतना सुनते ही चिंताराम जी की सारी चिंताएं दूर हो गईं। हमसे विदा लेकर निकले तो गली के मोड़ तक राम जेठमलानी जिंदाबाद का नारा लगा रहे थे। हमने भी चैन की सांस ली। बि

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