Hindi, asked by khushikhobragade6, 17 days ago

हिंदी कथा साहित्य में आए गतिरोध का परिणाम क्या हैं??​

Answers

Answered by jyotijalan16
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Answer:

Hope you will get help from my answer.

Explanation:

इस इकाई में हिन्दी कथा-साहित्य की चर्चा की गई है तथा विभिन्न आंदोलनों से संबंधित कहानी एवं उपन्यास साहित्य का परिचय दिया गया है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आप :

हिन्दी कहानी और उपन्यास के विकास को बता सकेंगे,

बदलते हुए सामाजिक-राजनीतिक संदर्भो में हिन्दी कहानी और उपन्यास की वस्तु,

संरचना और दृष्टि में उपस्थित परिवर्तनों का उल्लेख कर सकेंगे,

समय-समय पर हिन्दी कहानी में जो आन्दोलन हुए हैं, उनके महत्व और वैशिष्ट्य को रेखांकित कर सकेंगे,

समकालीन हिन्दी कहानी और उपन्यास की दशा और दिशा को समझ सकेंगे,

हिन्दी कहानी और उपन्यास में चित्रित दलित चेतना पर प्रकाश डाल सकेंगे, और

हिन्दी कहानी और उपन्यास की शिल्पगत विशेषताओं को बता सकेंगे।

प्रस्तुत इकाई में आधुनिक हिन्दी गद्य की दो प्रमुख विधाओं – कहानी और उपन्यास – के विकास पर समालोचनात्मक प्रकाश डाला जा रहा है इससे आप हिन्दी कहानी और उपन्यास के विकास को समझ सकेंगे। सबसे पहले आपको यह समझ लेना चाहिए कि कहानी और उपन्यास से संबंधित साहित्य को सम्मिलित रूप में कथा-साहित्य कहा जाता है। ये दोनों गद्य की दो महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय विधाएँ हैं और इनका विकास आधुनिक काल में हुआ है। ये विधाएँ संवेदना, कथ्य, शिल्प और संचेतना की दृष्टि से प्राचीन भारतीय कथा और आख्यायिका की परम्परा से भिन्न तथा आधुनिकता की चेतना से सम्पन्न हैं। इनके विकास और प्रवृत्ति को निरूपित करते समय यथास्थान इन तथ्यों पर चर्चा की जाएगी। इस संबंध में आपके लिए यह जानना जरूरी है कि उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अंग्रेजी सभ्यता, शिक्षा एवं साहित्य के प्रसार, भारतीय स्वाधीनता-संघर्ष और विभिन्न सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों के फलस्वरूप हिन्दी साहित्य-जगत में व्यापक परिवर्तन हुआ।

भारतेन्तु युग में हिन्दी नयी चाल में ढली, ब्रजभाषा का स्थान खड़ी बोली ने ले लिया, पद्य के साथ-साथ गद्य रचना की प्रवृत्ति विकसित ही नहीं हुई अपितु वह इतनी प्रबल एवं प्रमुख हुई कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल को हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल को ‘गद्य-काल’ की संज्ञा भी देनी पड़ी। आधुनिक काल में गद्य के आविर्भाव को शुक्ल जी ने एक साहित्यिक घटना कहा है और रेखांकित किया है कि इस काल में साहित्य के भीतर जितनी अनेकरूपता का विकास हुआ है उतनी अनेकरूपता का विधान कभी नहीं हुआ था।’ उल्लेखनीय है कि इसके पहले पद्य की प्रधानता थी। आदिकाल से लेकर रीतिकाल तक का समूचा हिन्दी साहित्य-पद्य साहित्य ही है। आधुनिक काल में सशक्त विचाराभिव्यक्ति के लिए गद्य का सहारा तो लिया ही गया, उसके अनेक रूपों को भी विकसित किया गया जिनमें निबंध, कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना, आत्मकथा, संस्मरण, रेखाचित्र आदि उल्लेखनीय हैं ।

यद्यपि हिन्दी कहानी और उपन्यास का विकास आधुनिक काल में ही हुआ, किन्तु दोनों के विकास की गति और रीति थोड़ी-बहुत भिन्नता लिए हुए है, इसलिए इनके विकास को पृथक रूप से समझना ही उचित एवं लाभप्रद है। अत: आगे हम आपको पहले हिन्दी कहानी और उसके बाद हिन्दी उपन्यास के विकास से अवगत कराएँगे।

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