हिंदी- लोकतंत्र और चुनाव
मुख्य बिंदु- लोकतंत्र में 'लोक'का महत्व, जनता की आवाज : चुने हुए प्रतिनिधि, प्रतिनिधि चुनने से लोकतंत्र की रक्षा, सही प्रतिनिधि कैसे चुने पर (80-100)शब्दों में अनुच्छेद लिखें
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लोकतन्त्र को जनतन्त्र भी कहते हैं; क्योंकि जनता के चुनाव के द्वारा ही यह तन्त्र बनता है । इसलिए बिना चुनाव का जो तन्त्र होता है । वह लोकतन्त्र या जनतन्त्र न होकर राजतन्त्र बन जाता है । इस प्रकार से लोकतन्त्र जनता का प्रतिनिधि तन्त्र है ।
इसमें समस्त जन समुदाय की सद्भावना और सद्विचार प्रकट होता है । लोकतन्त्र के अर्थ को स्पष्ट करते हुए महान् राजनेता एवं भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन, अमेरिका के राष्ट्रपति कैनेडी, जेफर्सन, लार्ड विवरेज, विश्वविद्यालय नाटककार वर्नाड शा, प्रोफेसर लास्की, सुप्रसिद्ध अंग्रेजी विद्वान वर्क आदि ने अलग-अलग विचार प्रकट किए हैं ।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था- ”लोकतन्त्र में चुनाव राजनैतिक शिक्षा देने का विश्वविद्यालय है ।” अब्राहम लिंकन ने लोकतन्त्र का अर्थ: ”जनता के ही हेतु, जनता द्वारा जनता का शासन बताया है ।” इस प्रकार से लोकतन्त्र में लोक-निष्ठा और लोक भावना का समावेश होता है ।
इसमें चुनाव का महत्त्व सर्वप्रथम और सर्वाधिक है । इससे लोक कल्याण प्रकट होता है । लोकतन्त्र अर्थात् जन प्रतिनिधि एक ऐसा तंत्र है, जिसमें जनकल्याण की भावना से सभी कार्य सम्पन्न किए जाते हैं । जनकल्याण की भावना एक-एक करके इस शासन तन्त्र के द्वारा हमारे सामने कार्य रूप में दिखाई पड़ने लगती है ।
लोकतन्त्र का महत्त्व इस दृष्टि से भी होता है कि लोकतन्त्र में सबकी भावनाओं का सम्मान होता है और सबको अपनी भावनाओं को स्वतन्त्र रूप से प्रकट करने का पूरा अवसर मिलता है । इसी प्रकार किसी भी तानाशाही का लोकतन्त्र करारा जबाव देता है ।
लोकतन्त्र का महत्त्वपूर्ण स्वरूप यह भी होता है कि इस तन्त्र में किसी प्रकार की भेद-भावना, असमानता, विषमता आदि को कोई स्थान नहीं मिलता है । इसके लिए लोकतन्त्र अपने चुनावी मुद्दों और वायदों के रखते हुए कमर कस करके इन्हें दूर करने की पूरी कोशिश करता है । चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ और उलझनें आ जाएँ, चुनाव की आवश्यकता इनसे अधिक बढ़ कर होती है ।
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