हिंदी निबंथ फुल कि आत्मकथा
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मैं एक फूल हूँ मुझे देखकर हर किसी का मन मोह जाता है | लोग मुझे अनेक नामों से पुकारते हैं जैसे कोई चमेली, गेंदा, गुलाब, कमल, सूर्यमुखी, चंपा, गुड़हल, मोगरा आदि तरह-तरह नाम से लोग मुझे पुकारते हैं | मेरा अस्तित्व इस संसार में तभी से है जब से मेरा निर्माण हुआ है | मैं प्रकृति की सुन्दर कृति हूँ लोग मेरी खुश्बू को अधिक पसंद करते हैं, मुझमें खुश्बू के साथ रंगों का भी समावेश देखा जाता है |
मैं तब से हूँ जब से ईश्वर है क्योंकि ईश्वर मुझसे ही पूजे जाते हैं | मैं संसार के हर कोनें में पाई जाती हूँ | जब मैं ताजी झोंको के साथ हंसती हूँ मुझसे ही रंग रूप और सौंदर्य है | सुगंध की उत्पत्ति मुझसे ही हुई है | जब मैं हवा की ताज़ी झोंको के साथ हँसती हूँ तब पूरा प्रकृति भावविभोर हो उठती हैं | मुझ पर साक्षात माता लक्ष्मी का निवास है | मैं उद्यान में खिलने वाला फप्प्ल हूँ सभी लोग मेरे रंग से परिचित है |
आज मैं लोगों के लिए रोजगार की साधन हो गई हूँ दुनिया में सबसे सुन्दर और कोमल रही हूँ | मेरी सुंदरता बहुत ही निराली है, मैं सूरज की पहली किरण के साथ अपनी पखुंडियों को बिखेर कर खिल जाती हूँ | जिस तरह मानव सुबह होते ही अंगड़ाई लेते हुए उठ जाता है उसी प्रकार मई भी खिलनें के बाद पहली बार इस दुनिया को देखती हूँ |
लोग मेरी सुंदरता को देखते ही मेरी तरफ खींचे हुए चले आते हैं यह देखकर मुझे अच्छा लगता है | जब मैं खिलती हूँ तो मेरी पखुंड़ियाँ बहुत ही कोमल हो जाती हैं और मुझमें अलग-अलग प्रकार सुगंधित खुश्बू भी आती है | मुझे उस समय बहुत दुःख होता है जब मानव मुझे बिना किसी वजह के तोड़ता है और अपने हाथों में मसल कर कहीं भी फेंक देता है |दुनिया में मेरा उम्र कुछ ही दिनों का होता है, फिर भी मैं खुश रहती हूँ | मैं दुसरो के चेहरे पर मुस्कान बिखेर देती हूँ | मैं हर किसी के दुःख और सुख में काम आती हूँ | जब किसी बड़े का सम्मान किया जाता है तब मेरी माला बनाकर उस महापुरुष को पहनाकर उनका सम्मान किया जाता है |
जब किसी की मृत्यु हो जाती है तब भी लोग मुझे इस्तेमाल में लेते हैं है | लोग मुझे ईश्वर के चरणों में सजाने के लिए उपयोग करते है यह देख कर मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है कि इतने छोटे से जीवन में मैं ईश्वर के इतने पास आई और उनकी शोभा बढ़ाई हूँ | मैं लाल, पीली, हरी, नीली, गुलाबी, सफेद आदि जैसे कई प्रकार की पाई जाती हूँ |जब मैं खिलती हूँ तब मुझ पर भौरे और मधुमक्खियां आकर बैठने लगती हैं | मेरे रास से किसी का पेट भरता है तो किसी का बीमारी दूर हो जाता है | मैं हर रोज बैग-बगीचों में खिलकर शोभा बढाती हूँ | जब मैं मुरझा जाती हूँ तो लोग मुझे कचरे में फेंक देते हैं जैसे मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं हो |
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