हिंदी -निबंध "स्वास्थ्य ही संपत्ती है|
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प्रसिद्ध कहावत है कि अगर मनुष्य की धन-सम्पत्ति नष्ट हो जाए, तो समझो कुछ भी नष्ट नहीं हुआ या फिर कोई बड़ी बात नहीं। एक स्वस्थ व्यक्ति लगातार परिश्रम सम्पत्ति दुबारा कमा और बना सकता है। लेकिन अगर उस का स्वास्थ्य ही रण नष्ट हो गया, तो समझो कि सभी कुछ गया, नष्ट हो गया। क्योंकि उस का अवस्था में व्यक्ति कुछ भी कर पाने में एकदम असमर्थ हो जाता है। जो व्यक्ति चल-फिर तक पाने में समर्थ नहीं होता, वह भला धन-सम्पत्ति या जीवन जीने के साधन क्या खाक अर्जित कर सकेगा? इसी कारण कहा गया है कि स्वास्थ्य ही सोना है या फिर स्वास्थ्य ही धन-सम्पत्ति आदि सभी कुछ है।
आपने लोगों को यह भी कहते सुना होगा कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन-मस्तिष्क का निवास रहा करता है। स्वस्थ मन-मस्तिष्क वाला आदमी हर बात अपने अच्छे-बुरे रूप में, उसके भले-बुरे परिणाम के सन्दर्भ में करने से पहले ही सोच-विचार कर उचित कदम उठा सकता है। स्वस्थ मन-मस्तिष्क से सोच-विचार कर स्वस्थ व्यक्ति द्वारा उठाया गया कदम कभी खाली नहीं जाया करता। वह इच्छित परिणाम अवश्य लाया करता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब रहता है, उसने सोच-समझ कर कोई क्रियात्मक कदम तो क्या उठाना है, उसका स्वभाव पूरी तरह चिड़चिड़ा हो जाता है।
वास्तव में उसमें सोच-विचार कर कोई काम करने की शक्ति रह ही नहीं जाया करती। वह हमेशा अपनी चिड़चिड़ाहट में उल्टा-सीधा सोचता और करता रहता है। ऐसा सोचने-करने से कोई लाभ तो क्या होना है, उल्टे हानि ही हुआ करती है। उस पर जो बदनामी होती है, लोगों की लानत और फटकार मिलती है, सो अलग। इसी कारण समझदार लोग हमेशा स्वास्थ्य बनाए रखने की बात कहा करते हैं। उन पदार्थों को खाने-पीने और उन कामों को करने से रोका करते हैं कि जिन का प्रभाव स्वास्थ्य बिगाड़ने वाला सिद्ध होने की संभावना रहा करती है।
स्वस्थ व्यक्ति ही क्योंकि ठीक ढंग से सोच-विचार कर, परिश्रमपूर्वक काम कर सुखी और समृद्ध जीवन व्यतीत कर सकता है, इसीलिए अर्थात् स्वस्थ जीवन जीने की कामना करते हुए ही संस्कृत में कहा गया है कि ‘यावत् जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा धृतं पिबेत्’ अर्थात् जब तक जियो स्वस्थ रहकर सुखपूर्वक जियो! इसके लिए यदि ऋण लेकर घी पीना पड़े, तो वह भी पियो।
यह बात मुहावरे के रूप में ही स्वस्थ रहने या स्वास्थ्य-रक्षा करने की प्रेरणा देने वाली है। ऋण लेकर घी पीने वाला स्वस्थ व्यक्ति अपनी स्वस्थ इच्छा-शक्ति से लगातार परिश्रम करके उस ऋण को उतार भी सकता है, दुर्बल और अस्वस्थ रहने वाला व्यक्ति ऐसा कुछ भी कर पाने में समर्थ नहीं हुआ करता। स्वास्थ्य के लिए घी पीने का अर्थ भी मुहावरे के रूप में घी पीना’ न होकर वास्तव में सन्तुलित और पौष्टिक आहार करना ही है, सचमुच घी पी जाना नहीं। वैसे घी का पीना विष का काम भी कर सकता है।
स्वस्थ शरीर रखने, स्वस्थ जीवन बिताने के लिए सन्तुलित और पौष्टिक भोजन करना आवश्यक हुआ करता है; यह बात ऊपर पहले भी कही जा चुकी है। इसी प्रकार आवश्यकता, कार्य और शारीरिक स्थिति के अनुसार थोड़ा-बहुत व्यायाम करना, भ्रमण करना भी अत्यन्त आवश्यक माना स्वच्छ वातावरण और वायु-मण्डल आवश्यक माना गया है। साफ-सुथरे रहना, स्वच्छ पानी में स्नान करना. स्वच्छ वातावरण और वायु-मण्डल में निवास करना भी आवश्यक और स्वास्थ्यवर्द्धक माना है।
एक और बात का ध्यान रखना भी स्वस्थ रहने के लिए बहुत जरूरी है। वह आदमी को अपने मन-मस्तिष्क में कभी भूल कर भी गन्दे एवं हीन काम-वासना बार नहीं आने देना चाहिए। ऐसे विचारों का प्रभाव शरीर पर दिखाई तो नहीं देता; सीतार-ही-भीतर शरीर को नष्ट कर दिया करता है। शरीर पर हो सकता है कि कुप्रभाव की दिखाई दे; पर मन-मस्तिष्क को तो गन्दे विचार धीरे-धीरे कमजोर बनाकर शक्तिहीन तथा अस्वस्थ कर ही दिया करते हैं । इस कारण हमेशा अच्छे विचार ही मन में लाने चाहिए। अच्छी पुस्तकें पढ़कर, अच्छे लोगों के साथ मिल-बैठ कर, अच्छे दृश्य देख कर और अच्छी बातें सनकर ही बरे विचारों से बचा और अच्छे विचार मन में लाए जा सकते हैं।
आज कल लोग शौक या मन की मौज पूरी करने के लिए तरह-तरह के नशे भी करने लगते हैं। हमेशा याद रखने वाली बात है कि नशा किसी भी तरह का और कोई भी क्यों न हो; मन-मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर को भी तोड़-मरोड़ कर रख दिया करता है। अर्थात् स्वास्थ्य का दुश्मन है नशा । वह भूख को मारता है, हाजमा बिगाड़ता है। यहाँ तक कि मुँह का स्वाद तक बिगाड़ देता है। तब सिवा नशे के और कुछ भी खाना-पीना अच्छा नहीं लगा करता। खाना पीना छूटा, समझो कि स्वास्थ्य गया। नहीं, अपनी स्वास्थ्य सम्बन्धी सम्पत्ति को यों नष्ट नहीं होने देना है। लम्बे और सुखी-समृद्ध जीवन के लिए स्वास्थ्य रूपी सम्पत्ति का मनुष्य के पास रहना बहुत ही आवश्यक है। इसके अतिरिक्त सुखी जीवन का अन्य कोई चारा नहीं।