हिंदी निबंध - शिक्षा के क्षेत्र मे महिलाए अव्वल
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शैक्षिक दायित्व के निर्वाह में महिलाओं की भूमिकाएं आज इस विषय पर अपने विचार आपके समक्ष प्रस्तुत करने का मुझे सुअवसर प्राप्त हुआ है। सबसे पहले मैं आपका ध्यान इस ओर दिलाना चाहती हूं कि इस वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर दो महिलाओं शमशाद बेगम और फूलबासन यादव को साक्षरता के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। मुझे यह कहते हुए अति प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि ये दोनों विभूतियां मेरे अपने प्रदेश छत्तीसगढ़ से हैं। इन दोनों महिलाओं ने अपनी सामाजिक, जातीय व आर्थिक बाधाओं को पार करते हुए अक्षर का दीपक उन अंधेरे कोनों में प्रकाशित किया, जहां असाक्षरता की सीलन जीवन को लील रही थी। इन्हें आज के जमाने की सावित्रीबाई फुले कहना उचित होगा। जैसा कि आप जानते ही होंगे कि सावित्रीबाई फुले ने तमाम विरोध और बाधाओं के बावजूद भारतीय समाज में स्त्री की शिक्षा की अलख जगाने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1840 में मात्र 9 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह पूना के ज्योतिबा फुले के साथ हुआ। सावित्री बाई की स्कूली शिक्षा नहीं हुई थी और ज्योतिबा तीसरी कक्षा तक पढ़े थे। लेकिन उनके मन में सामाजिक परिवर्तन की तीव्र इच्छा थी। इसलिये इस दिशा में समाज सेवा का जो पहला काम उन्होंने प्रारंभ किया वह था अपनी पत्नी सावित्रीबाई को शिक्षित करना।
लड़कियां पढऩे में अच्छी होती हैं। 10 वीं व 12वीं क्लास के नतीजे हर वर्ष बताते हैं कि लड़कियां परीक्षा में अव्वल रहतीं हैं। परंतु फिर भी पहली से लेकर बारहवीं कक्षा तक पहुंचने में उनकी संख्या में तेजी से गिरावट आती है। अधिकतर लड़कियां आठवीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ बैठती हैं। पुराने रीति.रिवाज उनका जल्दी पीछा नहीं छोड़ते हैं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी कहानी समाप्ति में लिखा है कि महिलाओं की दो ही श्रेणियां होती हैं. एक कुमारी और एक शादी.शुदा। अफसोस कि आज एक सदी बीत जाने के बावजूद लड़कियों के लिए ये दो श्रेणियां पूर्ववत हैं, उन्हें इन्हीं दो में विभक्त हो कर रहना है। इन दो श्रेणियों में कोई बुराई नहीं है, बुराई इस सोच में है कि लड़कियों का वजूद इनका ही मोहताज होकर रह गया है। सुशिक्षित नारी अपनी शिक्षा, ज्ञान का लाभ समाज को अगर देना चाहे तो उसे लाख बाधाओं का सामना करना पड़ता है। शैक्षिक दायित्व के निर्वाह में महिलाओं की भूमिका को इस पृष्ठभूमि में समझना होगा।
भारत के विकास में महिला साक्षरता का बहुत बड़ा योगदान है। पिछले कुछ दशकों से ज्यों.ज्यों महिला साक्षरता में वृद्धि होती आई है, भारत विकास के पक्ष पर अग्रसर हुआ है। हालाँकि इसमें और प्रगति की गुंजाइश है। महिला सशक्तिकरण की जब भी बात की जाती है। तब सिर्फ राजनीतिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण पर चर्चा होती है पर सामाजिक सशक्तिकरण की चर्चा नहीं होती। ऐतिहासिक रूप से महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है। महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से शिक्षा से वंचित रखने का षडयंत्र इसलिए किया गया कि न वह शिक्षित होंगी और न ही वह अपने अधिकारों की मांग करेंगी। यानी उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाये रखने में सहूलियत होगी। इसी वजह से महिलाओं में शिक्षा का प्रतिशत बहुत ही कम है। खैर अब बालिका.शिक्षा का महत्व केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों की समझ में आ गया है। और इस दिशा में दोनों के द्वारा महत्वपूर्ण क़दम उठाये जा रहे हैं। यह एक शुभ संकेत है।