हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई" इस पंक्ति में कबीर का व्यंग भाव है-
हिंदू और मुसलमानों का परस्पर प्रेम
हिंदू और मुसलमानों में उच्चता बोध की भावना
हिंदू और मुसलमानों में हीनता की भावना
इनमें से कोई नहीं
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हिंदू और मुसलमानों में हीनता की भावना
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हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई' के माध्यम से कबीर क्हना चाहते हैं कि उन्होंने हिंदुओं के सर्वोत्तमवाद और मुस्लिमों के सर्वोत्तमवाद को देखा है। दोनों अपना समय आडम्बर के आधार पर बर्बाद कर रहे हैं। 2) एक तरफ के हिन्दू बनिया के गुलाम हैं और वे दूसरे को अपने बर्तन नहीं छूना चाहते।
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