Hindi, asked by Shirin5489, 1 year ago

हिंदी साहित्य का इतिहास:-
(iii) भक्तिकाल की सामान्य प्रवृत्तियाँ,
(क) निर्गुण काव्य धारा :
(अ) संत काव्य धारा, सूफी काव्य धारा की सामान्य प्रवृत्तियाँ (प्रमुख कवि - कबीरदास, मलिक मुहम्मद जायसी)
(ख) सगुण काव्य धारा:
(ज) कृष्ण भक्ति धारा, राम भक्ति धारा की सामान्य प्रवृत्तियाँ (प्रमुख कवि - सूरदास, तुलसीदास)

Answers

Answered by mchatterjee
7

हिंदी साहित्य के इतिहास का जो भक्तिकाल था उसमे एक नहीं बल्कि कई सरे भक्त कवी थे जिनमे से किसी को निर्गुण तो किसी को सागुइन काव्य धरा का कवी कहा जाता थ. सगुन उपासक वाले कवी मूर्ति पूजा करते थे और निर्गुण उपासक वाले मूर्ति पूजा का खंडन करते थे.

कबीरदास  

कबीरदास जी निर्गुण काव्य धरा के कवी थे।  वो जो भी बोलते थे सामने बोलते थे।  वो एकेश्वर वाढ में विस्वास करते थे। वो जाती पैट को लेकर होने वाले बावलो का घोर विरोध करते थे। वो सबको साथ में लेकर चलने में जोर देते थे.

मलिक  मुहम्मद जायसी

जैसी सूफी काव्य धरा के कवी थे जो मुस्लिम होकर भी हिन्दुओ के तीज त्यैहारों पर ज्यादा लिकते थे. पद्मावत उनकी सबसे बड़ी कृति है जो आजीवन स्मरणीय रहेगा. वो नारी को देवी शक्ति मानते थे उन्होंने बाकि काव्य धरा के कवियों की तरह नारी को अपने काव्य में नहीं दर्शाया बल्कि उनको त्याग एवं समर्पण का रूप मन था जिस तरह से पद्मावत में राजा रतन सीन के मौत के बाद रानी नागमती एवं पद्मावती अपने पति के कहिता में जलकर सटी हो जाती है ये उनका समर्पण ही तो है.

Answered by ferozpurwale
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हिंदी साहित्य के इतिहास का जो भक्तिकाल था उसमे एक नहीं बल्कि कई सरे भक्त कवी थे जिनमे से किसी को निर्गुण तो किसी को सागुइन काव्य धरा का कवी कहा जाता थ. सगुन उपासक वाले कवी मूर्ति पूजा करते थे और निर्गुण उपासक वाले मूर्ति पूजा का खंडन करते थे.

कबीरदास  

कबीरदास जी निर्गुण काव्य धरा के कवी थे।  वो जो भी बोलते थे सामने बोलते थे।  वो एकेश्वर वाढ में विस्वास करते थे। वो जाती पैट को लेकर होने वाले बावलो का घोर विरोध करते थे। वो सबको साथ में लेकर चलने में जोर देते थे.

मलिक  मुहम्मद जायसी

जैसी सूफी काव्य धरा के कवी थे जो मुस्लिम होकर भी हिन्दुओ के तीज त्यैहारों पर ज्यादा लिकते थे. पद्मावत उनकी सबसे बड़ी कृति है जो आजीवन स्मरणीय रहेगा. वो नारी को देवी शक्ति मानते थे उन्होंने बाकि काव्य धरा के कवियों की तरह नारी को अपने काव्य में नहीं दर्शाया बल्कि उनको त्याग एवं समर्पण का रूप मन था जिस तरह से पद्मावत में राजा रतन सीन के मौत के बाद रानी नागमती एवं पद्मावती अपने पति के कहिता में जलकर सटी हो जाती है ये उनका समर्पण ही तो है.

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