Hindi, asked by deethedevil4444, 1 year ago

हिंदी ध्वनियों की उच्चारणगत विशेतषताएँ बताइए ।​

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Answered by Anonymous
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हिंदी की ध्वनियाँ

हिंदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है| एक तो ये जिस रूप में लिखी जाती है, बिल्कुल उसी तरह बोली जाती है, किन्तु अंग्रेज़ी में ऐसा नहीं है| उदाहरण के लिए, बी(B) यू(U) टी(T) का उच्चारण ‘बट’ है तो पी(P) यू(U) टी(T) का ‘पुट’ होता है, जबकि या तो दूसरे शब्द का उच्चारण ‘पट’ होना चाहिए या फिर पहले का ‘बुट’| एक ही स्वर कहीं ‘यु’, ‘यू’ या ‘उ’ है तो कहीं ‘अ’ है। इसी तरह अरबी लिपि में तीन स्वरों से तेरह स्वरों का काम लिया जाता है। हिंदी में ऐसा नहीं है| इसमें लेखन और उच्चारण में बहुत अधिक शुद्धता और समानता मौजूद है| अनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग चिह्नों के प्रयोग ने इसे और वैज्ञानिक बना दिया है| बीसवीं सदी में जब हिंदी ने यूरोपीय भाषाओं से तथा अरबी-फारसी से शब्द अपनाए तो इसके लिए नए चिह्न भी ग्रहण किए| जैसे ‘डॉक्टर’ शब्द अंग्रेज़ी से आया है, इसका पहला स्वर है- ‘ऑ’| चूंकि हिंदी में यह स्वर उपलब्ध नहीं था, यहाँ ‘आ’ तो था; ‘ऑ’ नहीं था, इसलिए हिंदी में अंग्रेज़ी से आए ऐसे शब्दों के उच्चारण के लिए ‘ऑ’ चिह्न को अपना लिया गया| इसी प्रकार अरबी-फारसी के कुछ शब्दों के सटीक उच्चारण के लिए हिंदी ने पाँच नई ध्वनियाँ अपनाई- क़, ख़, ग़, ज़ और फ़| जाहिर है, इससे हिंदी की शब्द-संपदा तो बढ़ी ही, इसमें भावों को और अधिक सूक्ष्मता तथा स्पष्टता से अभिव्यक्त करने की शक्ति भी आई|

हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता की दूसरी विशेषता है- इसके शब्दों के उच्चारण की सटीकता| हिंदी भाषा की वर्णमाला में दो वर्ग हैं- स्वर और व्यंजन| इन दोनों वर्गों की ध्वनियों को इतने वैज्ञानिक तरीक़े से व्यवस्थित किया गया है कि इनके द्वारा किसी भी अभाषी व्यक्ति को हिंदी का पूरी सरलता के साथ शुद्ध उच्चारण करना सिखाया जा सकता है| उदाहरण के लिए यदि हम ‘उच्चारण के स्थान’ के आधार पर हिंदी की स्वर और व्यंजन ध्वनियों का बंटवारा करना चाहें, तो आसानी से किया जा सकता है| स्वर ध्वनियों के उच्चारण में किसी अन्य ध्वनि की सहायता नहीं ली जाती। वायु मुखगुहा से बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है, किन्तु व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरों की सहायता ली जाती है। व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में भीतर से आने वाली वायु मुखगुहा में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बाधित होती है। मुखगुहा के उन ‘लगभग अचल’ स्थानों को उच्चारण बिन्दु (articulation point) कहते हैं, जिनको ‘चल वस्तुएँ’ (Movable things) छूकर जब ध्वनि-मार्ग में बाधा डालती हैं तो ध्वनियों का उच्चारण होता है। मुखगुहा में ‘अचल उच्चारक’ मुख्यतः मुखगुहा की छत का कोई भाग होता है जबकि ‘चल उच्चारक’ मुख्यतः जिह्वा, नीचे वाला ओष्ठ, तथा श्वासद्वार (ग्लोटिस) होते हैं। यानी कुछ ध्वनियों का उच्चारण कंठ, तालु, मूर्द्धा, दंत तथा ओष्ठ से किया जाता है तो कुछ का मुख के अंगों जैसे कंठ+तालु, कंठ+ओष्ठ, दंत+ओष्ठ, और मुख+नाक से संयुक्त रूप से भी किया जाता है|

आइए, हिंदी की सभी ध्वनियों का उनके उच्चारण स्थान के आधार पर वर्गीकरण करते हैं-

कंठ्य ध्वनियाँ- इस वर्ग की सभी ध्वनियों का उच्चारण कंठ से होता है| इस वर्ग की ध्वनियाँ हैं- अ, आ (स्वर); क, व, ग, घ, ङ (व्यंजन)|

तालव्य ध्वनियाँ- जिस ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा का मध्य भाग तालु से स्पर्श करता है, उन्हें तालव्य कहते हैं। इ, ई (स्वर); च, छ, ज, झ, ञ, श, य (व्यंजन)|

मूर्द्धन्य ध्वनियाँ- इसके अंतर्गत वे ध्वनियाँ रखी गई हैं, जिनका उच्चारण मुर्द्धा से होता है, जैसे- ट, ठ, ड, ढ, ण, ष (सभी व्यंजन ध्वनियाँ)|

दन्त्य ध्वनियाँ- त, थ, द, ध, न, र, ल, स, क्ष (सभी व्यंजन ध्वनियाँ)|

ओष्ठ्य ध्वनियाँ- जो ध्वनियाँ दोनों होंठों के स्पर्श से उत्पन्न होती है, उन्हें ओष्ठ्य कहते हैं। हिंदी में प, फ, ब, भ, म ध्वनियाँ ओष्ठ्य हैं|

अनुनासिक ध्वनियाँ- इन ध्वनियों का उच्चारण मुंह और नाक दोनों के सहयोग से होता है| इनके उच्चारण के दौरान कुछ वायु नाक से निकलते हुए एक अनुगूंज-सी पैदा करती है| हिंदी की व्यंजन ध्वनियों का प्रत्येक वर्ग पाँच वर्णों का है, जो एक ही स्थान से उच्चारित होते हैं, जैसे- क, ख, ग, घ, ङ या च, छ, ज, झ, ञ या ट, ठ, ड, ढ, ण या त, थ, द, ध, न अथवा प, फ, ब, भ, म| इनके प्रत्येक वर्ग की अंतिम ध्वनि अर्थात ङ, ञ, ण, न और म अनुनासिक ध्वनि है| देवनागरी लिपि में अनुनासिकता को चन्द्रबिंदु (ँ) द्वारा व्यक्त किया जाता है। किंतु जब स्वर के ऊपर मात्रा हो तो चन्द्रबिन्दु के स्थान पर केवल बिंदु (ं) लगाया जाता है, जैसे – अँ, ऊँ, ऐं, ओं आदि। अनुस्वार भी इसी के अंतर्गत आते हैं|

दन्त्योष्ठ्य ध्वनियाँ- जिन व्यंजनों का उच्चारण दन्त और ओष्ठ की सहायता से होता है, उन्हें दन्त्योष्ठ्य व्यंजन ध्वनियाँ कहते हैं। जैसे – फ, व।

कंठ-तालव्य

Answered by Myotis
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Answer:

ध्वनि के बिना शब्दों, शब्दों या वाक्यों की कल्पना नहीं की जा सकती। किसी भी भाषा में, ध्वनियों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। ध्वनियों का समूह शब्द, वाक्यांश, यहां तक ​​कि भाषा भी है। प्राचीन भारतीय विचार परंपरा में भी, ध्वनियों का अध्ययन शिक्षा और प्रतिपादक के तहत किया गया है जबकि भाषा विज्ञान में ध्वनियों का अध्ययन ध्वनिविज्ञान (ध्वनिविज्ञान) के तहत किया जाता है।

ध्वनिविज्ञान या ध्वनिविज्ञान को ध्वनियों के उत्पादन के आधार पर तीन शाखाओं में बांटा गया है, अनुदैर्ध्य और ग्रहण 1. हिस्टेरिक्स ध्वनिविज्ञान (कलात्मक ध्वन्यात्मक) 2. भौतिकी ध्वन्यात्मक (ध्वनिक ध्वन्यात्मक) 3. नेत्र विज्ञान (श्रवण ध्वन्यात्मक)। ध्वनि के उच्चारण से संबंधित औचित्य ध्वन्यात्मक अध्ययन। ध्वनियों का उच्चारण स्थान क्या है, इसमें कौन से वाक् तत्व जोड़े जाते हैं, किस रूप में वायु ध्वनियों को उच्च बनाती है। संबंधित प्रयोगशालाओं के उत्पादन से संबंधित अध्ययन इस शाखा में किए जाते हैं। भौतिकी के नादविद्या में, ध्वनि के उच्चारण के बाद, वायु तरंगों के माध्यम से ध्वनि सभी के संपर्क में कैसे आती है। अर्थात्, ये ध्वनियाँ अवकाश और श्रोता के बीच पहुँचती हैं। इसका अध्ययन किया गया है। इस शाखा का आधार क्लोनिस का संक्रामक अध्ययन है।

ध्वन्यात्मक ध्वन्यात्मकता के तहत वायु तरंगों के माध्यम से ध्वनि हमारे कानों तक पहुंचती है। इसके तहत ध्वनियों के श्रवण से संबंधित अध्ययन किया जाता है। हमारे कान के अंदर की आवाजें हमारे तंत्रिका कोशिकाओं के माध्यम से हमारे मस्तिष्क तक कैसे पहुंचती हैं और सुनने वाला मस्तिष्क में स्थित पदार्थ और भावनाओं की छवियों के माध्यम से वक्ता की भावनाओं को कैसे मानता है। इन सभी का अध्ययन फीनोलॉजी की शाखा के तहत किया जाता है। संबंधित ध्वनियों के ग्रहण से संबंधित अध्ययन, श्रोनिक्स ध्वनिविज्ञान के मूल में हैं।

लेख 'ध्वनि संरचना' में प्रस्तुत विषय केवल औचित्य और ध्वनि विज्ञान से संबंधित है। इसलिए ध्वनियों के उत्पादन के संबंध में चर्चा की जाती है।

भाषा की रेटिंग स्पष्ट है। उच्चारण की भाषा में, शब्द ध्वनियों से बनते हैं, अर्थात् वाक् ध्वनियाँ। भाषा के माध्यम से, मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। भाषा में क्रमशः वाक्य, वाक्यांश, वाक्यांश, रूपिम और ध्वनि (ध्वनि) की सबसे छोटी इकाई होती है। यह फोनेम (ध्वनि) की सबसे छोटी इकाई है। यानी भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। वाक्य, खंड, मार्ग, छंद और रूप, या रूपया आदि सभी अर्थपूर्ण हैं और सभी ध्वनियों के समूह से बनते हैं। ध्वनियाँ अपने आप में सार्थक नहीं हैं, लेकिन अर्थ अव्यक्त है। मानव चेहरे से ध्वनियाँ निकलती हैं। होंठ, जीभ, दांत, तालु, कशेरुका, गला, स्वरयंत्र, फेफड़े, नाक गुहा का गैर-धातुओं के उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान है। ये सबसे अधिक चलने वाली जीभ हैं। तोपखाने के उत्पादन में सबसे महत्वपूर्ण तत्व हवा है। ध्वनि को हवा के मुंह में किसी स्थान पर अवरोध, स्पर्श, घर्षण, ध्वनि-विज्ञान के संकरण आदि के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। हवा का दबाव कितना कम या अधिक है, इसके आधार पर व्यंजन ध्वनियों में जीवन का निर्धारण होता है। यदि हवा नाक गुहा से बाहर आती है, तो इससे सुनाई देने वाली आवाज़ को नाक की आवाज़ कहा जाता है।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि भाषा मानव मुख से ध्वनियों का समूह है। भाषा की ध्वनियाँ केवल ध्वनियाँ हैं। शब्द या वाक्यांश ध्वनियों से बनते हैं। शब्द / वाक्यांश वाक्यांश से बने होते हैं, वाक्यांश से वाक्यांश, वाक्यांश से वाक्यांश। वाक्य भाषा की सबसे बड़ी इकाई है। भाषिक दृष्टिकोण से ध्वनि को हंस (फोन) कहा जाता है। जिस शास्त्र के अंतर्गत ध्वनि का अध्ययन किया जाता है, उसे ध्वनिविज्ञान (ध्वन्यात्मक) ध्वनिविज्ञान कहा जाता है। इस इकाई के अंतर्गत, जहाँ स्वरों को जीभ की ऊँचाई, जीभ की स्थिति और होठों के आकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, व्यंजन ध्वनियों को उनके उच्चारण स्थान, उच्चारण प्रयास आदि के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। अक्षर और शब्द (क्षत्र, त्र) , gya, shra) को भी इस लेख में माना गया है।

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