Science, asked by kumardeepak01473, 3 months ago

हिंदी उत्कर्ष सूक्तियां​

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Answered by harshithapalat11
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Answer:

नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में,

अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुञ्ज-कानन में।

समझे कौन रहस्य ? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल,

गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े कीमती लाल

जलद-पटल में छिपा, किन्तु रवि कब तक रह सकता है?

युग की अवहेलना शूरमा कब तक सह सकता है?

पाकर समय एक दिन आखिर उठी जवानी जाग,

फूट पड़ी सबके समक्ष पौरुष की पहली आग।

- रश्मिरथी (रामधारी सिंह दिनकर)

साकेत (मैथिलीशरण गुप्त)  

मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त

जहाँ अभिषेक-अम्बुद छा रहे थे,

मयूरों-से सभी मुद पा रहे थे,

वहाँ परिणाम में पत्थर पड़े यों,

खड़े ही रह गये सब थे खड़े ज्यों।

करें कब क्या, इसे बस राम जानें,

वही अपने अलौकिक काम जानें।

कहाँ है कल्पने! तू देख आकर,

स्वयं ही सत्य हो यह गीत गाकर।

बिदा होकर प्रिया से वीर लक्ष्मण--

हुए नत राम के आगे उसी क्षण।

हृदय से राम ने उनको लगाया,

कहा--"प्रत्यक्ष यह साम्राज्य पाया।"

हुआ सौमित्रि को संकोच सुन के

नयन नीचे हुए तत्काल उनके।

न वे कुछ कह सके प्रतिवाद-भय से,

समझते भाग्य थे अपना हृदय से।

कहा आनन्दपूर्वक राम ने तब--

"चलो, पितृ-वन्दना करने चलें अब।"

हुए सौमित्रि पीछे, राम आगे--

चले तो भूमि के भी भाग्य जागे।

अयोध्या के अजिर को व्योम जानों

उदित उसमें हुए सुरवैद्य मानों।

कमल-दल-से बिछाते भूमितल में,

गये दोनों विमाता के महल में।

पिता ने उस समय ही चेत पाकर,

कहा--"हा राम, हा सुत, हा गुणाकर!"

सुना करुणा-भरा निज नाम ज्यों ही,

चकित होकर बढ़े झट राम त्यों ही।

- साकेत (मैथिलीशरण गुप्त)

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