हिंदू वासियों में कैसी विविध आए हैं
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किसी भी रेडियो चैनल ने अगर देश में साठ बरस से ज्यादा का सफर तय किया है तो यह प्रसारण इतिहास की एक अहम घटना है. देश के इतिहास का साझीदार बनने के साथ-साथ ऐसा रेडियो चैनल हर कदम पर नई चुनौतियों का सामना भी करता है. इसकी वजह यह है कि आधी सदी से ज्यादा की अपनी सक्रियता के दौरान रेडियो चैनल निश्चित रूप से अपनी संस्कृति गढ़ता है. अपना मुहावरा रचता है और बदलते वक्त, श्रोताओं और जरूरतों के मुताबिक खुद को ढालता है.
आज यानी 3 अक्टूबर को विविध भारती की स्थापना के 60 बरस पूरे हो रहे हैं. विविध भारती की स्थापना ऐसे दौर में की गई थी जब भारत में मनोरंजन का कोई और केंद्र नहीं था और भारतीय जनमानस के मनोरंजन का बीड़ा उठाया था रेडियो सीलोन ने. हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका की नियमित रेडियो सेवा के विदेश विभाग ने भारतीय श्रोताओं को पूरी तरह मोहित कर लिया था.
Explanation:
संगीत का यह वह दौर था जब अलग-अलग पीढ़ी के बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार, गीतकार और गायक एक साथ सक्रिय थे. सबसे दिलचस्प बात यह है कि आज भी हमारे लिए पुराने गानों का मतलब इसी दौर के गानों से है. यह जिस समय की बात है तब प्रसारण की तकनीक आज की तरह उन्नत नहीं थी.
आज के स्टीरियो एफएम रेडियो स्टेशनों के बजाय तब मीडियम वेव और शॉर्ट वेव पर प्रसारण किया जाता था. प्रसारण के ये माध्यम भले ही उतने स्पष्ट और सहज नहीं थे, फिर भी इनके दीवानों की कमी नहीं थी. रेडियो सीलोन, बीबीसी की हिंदी और उर्दू सेवा या बाद में आए आकाशवाणी के राष्ट्रीय प्रसारण भी इसकी मिसाल हैं.
यह सच है कि रेडियो सीलोन के कार्यक्रम सुनना थोड़ा मुश्किल था. शॉर्ट वेव के प्रसारणों के लिए जाली वाला एंटीना लगाया जाता था और मीडियम वेव भी एरियल के सहारे ही आता था. इस सबके बावजूद प्रसारण काफी उतार-चढ़ाव भरा होता था.
वहीं रेडियो सीलोन का कंटेंट इतना शानदार होता था कि गली-मुहल्लों में लगातार उसकी आवाज सुनाई देती रहती थी. यानी अगर आप अपने शहर में टहलना शुरू करें तो घरों से आती रेडियो सीलोन की आवाजें लगातार आपका पीछा करती रहती थीं.
जब यह दिखाई दिया कि भारतीय कंपनियां अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए इस रेडियो-स्टेशन का सहारा ले रही हैं और देश का पैसा बाहर जा रहा है तो भारत सरकार ने विविध भारती की परिकल्पना की.
विविध भारती की स्थाापना की एक और वजह थी. एक जमाने में भारत सरकार ने अनेक कारणों से आकाशवाणी पर फिल्मी गाने बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया था. यह समझा जा रहा था कि फिल्मी दुनिया से आ रहे गाने लोगों को बिगाड़ते हैं. इसलिए केवल सुगम-संगीत पर आधारित गीत ही रेडियो पर बजाए जाते थे.
उसी दौर में रेडियो सीलोन ताजा फिल्मी गीतों के जरिये श्रोताओं के बीच पहुंचकर अपने ‘व्यावसायिक-हितों’ को पूरा भी कर रहा था. ऐसे दौर में केशव पांडे, पंडित नरेंद्र शर्मा, गोपालदास और गिरिजा कुमार माथुर जैसी साहित्य और रेडियो प्रसारण की कद्दावर हस्तियों ने विविध भारती की नींव रखी.