हृदय में मेरे ही,
प्रसन्न चित्त एक मूर्ख बैठा है
हंस हंसकर अश्रुपूर्ण मत्त हुआ जाता है
कि जगत-स्वायत्त हुआ जाता है।
कहानियाँ लेकर और
मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते
जहाँ जरा खड़े होकर
बातें कुछ करता हूँ
उपन्यास मिल जाते
न
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isme kya batana he bhai
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