Math, asked by shubhamkhatri1105, 9 months ago

हृदय सिंधु मति सीप समाना।
स्वाति सारदा कहहिं सुजाना।
जो बरषइ बर बारि विचारू।
होंहि कवित मुक्तामनि चारू।।​

Answers

Answered by funmat
10

Answer:पद का भावर्थ इस प्रकार है-

Explanation:समझदार व्यक्ति अपने मन को सिंधु नदी के समान विशाल रखता है और अपने विवेक को हमेशा सीप समान रखता है तथा मां सरस्वती को स्वाति मानता है। जिस प्रकार वर्षा का जल बरसता है, उसी प्रकार जब अच्छे विचार मन में प्रवाहित होते हैं तब मुक्तामणि अर्थात मोती के समान कविता जन्म लेती है।

Answered by harant72
7

PLEASE MARK IT AS A BRAINLIEST AND FOLLOW ME

Answer:

हृदय सिंधु मति सीप समाना।

स्वाति सारदा कहहिं सुजाना।।

जो बरषइ बर बारि विचारू।

होंहि कवित मुक्तामनि चारू।।

भावार्थ — जो व्यक्ति समझदार और विवेकशील होता है, वह अपने मन को सिंधु अर्थात समुद्र के समान विशाल बना लेता है। वो अपने विवेक और बुद्धि को सीप के समान बनाकर रखता है। सरस्वती के आशीर्वाद को वो स्वाति नक्षत्र के समान मानता है। सरस्वती रूपी नक्षत्र में जब वर्षा रूपी जल बरसता है तो मन में श्रेष्ठ विचार उत्पन्न होते हैं। तब मोती रूपी उत्तम और श्रेष्ठ कविता की रचना होती है।

Similar questions