हाउ डिड अलाउद्दीन खिलजी एक्सपेंड हिस एंपायर
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अलाउद्दीन खिलजी (वास्तविक नाम अलीगुर्शप 1296-1316) दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था।[1] उसका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर उत्तर-मध्य भारत तक फैला था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। मेवाड़ चित्तौड़ का युद्धक अभियान इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।[2] ऐसा माना जाता है कि वो चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुन्दरता पर मोहित था।[3] इसका वर्णन मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना पद्मावत में किया है।[4]
अलाउद्दीन खिलजी
Sultan Alauddin Khalji.jpg
अलाउद्दीन खिलजी का एक चित्र
दिल्ली का सुल्तान
शासनावधि
1296–1316
राज्याभिषेक
1296
पूर्ववर्ती
जलालुद्दीन खिलजी
उत्तरवर्ती
शहाबुद्दीन उमर
अवध का राज्यपाल
कार्यकाल
1296
कड़ा का राज्यपाल
कार्यकाल
1291–1296
पूर्ववर्ती
मलिक छज्जू
उत्तरवर्ती
अला-उल मुल्क
अमीर-ए-तुज़ुक
कार्यकाल
1290–1291
जन्म
अली गुरशास्प
c. 1266-1267
निधन
दिल्ली, भारत
समाधि
दिल्ली, भारत
जीवनसंगी
मलिका-ए-जहाँ (जलालुद्दीन की बेटी)
महरू (अल्प खान की बहन)
कमलादेवी (कर्ण की पूर्व पत्नी)
संतान
खिज़्र खान
शादी खान
कुतुबुद्दीन मुबारक शाह
शाहबुद्दीन उमर
शासनावधि नाम
अलाउद्दुनिया वाद दीन मुहम्मद शाह-उस सुल्तान
राजवंश
खिलजी राजवंश
पिता
शाहबुद्दीन मसूद
धर्म
सुन्नी इस्लाम
खिलजी साम्राज्य की सीमाएं[disputed – discuss]
उसके समय में उत्तर पूर्व से मंगोल आक्रमण भी हुए। उसने उसका भी डटकर सामना किया।[5] अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी। इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से 22 अक्टूबर 1296 को खुद से गले मिलते समय अपने दो सैनिकों (मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद) द्वारा करवा दी। इस प्रकार उसने अपने सगे चाचा जो उसे अपने औलाद की भांति प्रेम करता था के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को