हो, वह ले लो।"
उठाऊँगा और न ही लगा। तुम भली-भाँति बताओ। तुमने सेना-बल के बजाए मुझ नि:शस्त्र
सोच लो, तब निर्णय करो। इन दो में से जो पसंद
को क्यों पसंद किया?"
अर्जुन बोला-“बात यह है कि आप में वह
बिना किसी हिचकिचाहट के अर्जुन बोला-
शक्ति है कि जिससे आप अकेले ही इन तमाम
आप शस्त्र उठाएँ या न उठाएँ, आप चाहे लड़ें राजाओं से लड़कर इन्हें कुचल सकते हैं।"
या न लड़ें, मैं तो आपको ही चाहता हूँ।"
अर्जुन की बात सुनकर कृष्ण मुसकराए
दुर्योधन के आनंद की सीमा न रही। वह और बोले-“अच्छा, यह बात है!" और अर्जुन
सोचने लगा कि अर्जुन ने खूब धोखा खाया और को बड़े प्रेम से विदा किया। इस प्रकार श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण की वह लाखों वीरोंवाली भारी-भरकम अर्जुन के सारथी बने और पार्थ-सारथी की
सेना सहज में ही उसके हाथ आ गई। यह सोचता पदवी प्राप्त की।
और हर्ष से फूला न समाता दुर्योधन बलराम जी मद्र देश के राजा शल्य नकुल-सहदेव के
के यहाँ पहुँचा और उनको सारा हाल कह सुनाया।
माँ माद्री के भाई थे। जब उन्हें यह खबर मिल
बलराम जी ने दुर्योधन की बातें ध्यान से सुनी और कि पांडव उपप्लव्य के नगर में युद्ध की तैयारिय
बोले-"दुर्योधन! मालूम होता है कि उत्तरा के कर रहे हैं, तो उन्होंने एक भारी सेना इकट्ठी क
विवाह के अवसर पर मैंने जो कुछ कहा था
और उसे लेकर पांडवों की सहायता के लि
उसकी खबर तुम्हें मिल गई है। कृष्ण से भी मैंने उपप्लव्य की ओर रवाना हो गए।
सतीशी सम्प्लन
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Anyone free follow me and i would like to follow u back ✌
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What is this????
sorry, but it is not understandable
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