Haar ki jeet summary in hindi
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एक गाँव में छोटे से मंदिर में एक संत रहते थे। उनका नाम बाबा भारती था। उनके पास एक घोड़ा था जिसका नाम सुल्तान था। वे उसे बहुत प्यार करते थे और उसके बिना रह नहीं सकते थे। उस इलाके में खड़कसिंह नाम का एक डाकू रहता था। उसने लोगों से सुल्तान की प्रशंसा सुनी और उसे देखने बाबा भारती के पास आया। उसे वह घोड़ा बहुत अच्छा लगा। उसने जाते समय बाबा भारती से कहा कि वह उस घोड़े को उनके पास नहीं रहने देगा।
बाबा भारती इस धमकी से डर गए और कई महीनों तक रात को अस्तबल में घोड़े की रखवाली करते रहे। एक दिन जब वे सुल्तान पर बैठकर घूमने जा रहे थे, एक गरीब आदमी ने उन्हें आवाज़ दी। वह अपाहिज था। उसने बाबा भारती से विनती करी कि वे उसे अपने घोड़े पर बैठाकर दूसरे गाँव तक पहुँचा दें।
बाबा भारती ने उसे घोड़े पर सवार कर दिया और स्वयं लगाम पकड़कर चलने लगे। सहसा उनके हाथ से लगाम छूट गयी और उन्होंने देखा कि वह आदमी घोड़े को तेज़ी से भगाये ले जा रहा है। उनके मुख से चीख निकल पड़ी। वह आदमी खड़कसिंह था।
उन्होंने कुछ सोंचकर खड़कसिंह को आवाज़ दी और रुकने को कहा। उन्होंने उससे कहा कि अब वह घोड़ा उसका है और वे उससे उसे वापस करने के लिए नहीं कहेंगे। लेकिन उनकी एक प्रार्थना है जिसे उसे अस्वीकार नहीं करना चाहिए। उन्होंने उससे कहा कि उस घटना के बारे में वह किसी को न बताये। उनका विचार था कि यदि लोगों को इसके बारे में पता चलेगा तो वे दीन दुखियों पर विश्वास नहीं करेंगे।
ये बात खड़कसिंह के मन को छू गयी। वह बाबा भारती के ऊँचे विचारों को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। वह उस घोड़े को इतना प्यार करते थे कि उसके बिना जी नहीं सकते थे। लेकिन इस समय उन्हें अपने दुःख की चिंता नहीं थी बल्कि वे दीन दुखियों के बारे में सोंच रहे थे।
रात के समय वह सुल्तान को वापस अस्तबल में छोड़ गया। सुबह बाबा भारती उसे अस्तबल में देखकर अचंभित हुए। वे उसे गले से लगाकर इस प्रकार रोये जैसे एक पिता अपने बिछड़े हुए पुत्र से मिलकर रोता है। उन्हें यह संतोष हुआ कि अब कोई दीन दुखियों से मुँह नहीं मोड़ेगा।
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