हडप्पा कालीन कृषि प्रौद्योगिक
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Explanation:
सिन्धु और पंजाब में प्रतिवर्ष नदियों द्वारा लाइ गई उपजाऊ मिट्टी में कृषि कार्य अधिक श्रम-साध्य नहीं रहा होगा. इस नरम मिट्टी में कृषि के लिए शायद ताम्बे की पतली कुल्हाड़ियों को लकड़ी के हत्थे पर बाँध कर तत्कालीन किसान भूमि खोदते रहे होंगे. मोहनजोदड़ो से पत्थर के तीन ऐसे उपकरण मिले हैं जिनके आकार-प्रकार और भारीपन से इनके शस्त्र के रूप में प्रयुक्त होने की संभावना कम लगती है. इन्हें कुछ लापरवाही से निर्मित किया गया है. ऐसा सुझाव दिया जाता है कि ये हल के फाल थे. हल लकड़ी के रहे होंगे जो अब नष्ट हो गये हैं.सिंचाई के लिए संभवतः बाँधों का प्रयोग किया गया. नगर के आसपास की भूमि में इतना अनाज पैदा होता रहा होगा कि वहाँ के लोग अपनी जरुरत के लिए अनाज रख लेने के बाद शेष अनाज इन नगरों के लिए लोगों के लिए भेज सकते थे.
सिंघु जैसी समृद्ध सभ्यता के पर्याप्त जनसंख्या वाले महानगरों की स्थिति और विकास एक अत्यंत उपजाऊ प्रदेश की पृष्ठभूमि में ही संभव था. सिंघु घाटी सभ्यता के विकसित तकनीक से बने विभिन्न उपकरणों से स्पष्ट है कि वे पेशेवर शिल्पियों की कृतियाँ हैं और उससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय के कृषक निश्चय ही पर्याप्त मात्रा में अतिरिक्त अन्न पैदा करते थे.गेहूँ और जौ तो सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के मुख्य खादान्न थे ही, वे खजूर, सरसों, तिल और मटर भी उगाते थे. सरसों तथा तिल की खेती मुख्य रूप से तेल के लिए करते रहे होंगे. वे राई भी उपजाते थे. हड़प्पा में तरबूज के बीज मिले.सेलखड़ी की बनी नीम्बू की पत्ती से स्पष्ट है कि वे लोग नीम्बू से परिचित थे. लोथल और रंगपुर से धान (चावल) की उपज के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है. जबकि हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो से धान की जानकारी का कोई साक्ष्य नहीं प्राप्त हुआ है. सौराष्ट्र में बाजरे की खेती होती थी.