हडप्पा सभ्यता की नगर निर्माण योजना का विस्तार से वर्णन कीजिए। संख्या 5-8 एनसी ई.आर टी.).
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वास्तव में सिन्धु घाटी सभ्यता अपनी विशिष्ट एवं उन्नत नगर योजना (town planning) के लिए विश्व प्रसिद्ध है क्योंकि इतनी उच्चकोटि का “वस्ति विन्यास” समकालीन मेसोपोटामिया आदि जैसे अन्य किसी सभ्यता में नहीं मिलता. सिन्धु अथवा हड़प्पा सभ्यता के नगर का अभिविन्यास शतरंज पट (ग्रिड प्लानिंग) की तरह होता था, जिसमें मोहनजोदड़ो की उत्तर-दक्षिणी हवाओं का लाभ उठाते हुए सड़कें करीब-करीब उत्तर से दक्षिण तथा पूर्ण से पश्चिम को ओर जाती थीं. इस प्रकार चार सड़कों से घिरे आयतों में “आवासीय भवन” तथा अन्य प्रकार के निर्माण किये गये हैं.
नगर योजना एवं वास्तुकला के अध्ययन हेतु हड़प्पा सभ्यता के निम्न नगरों का उल्लेख प्रासंगिक प्रतीत होता है –
- हड़प्पा
- मोहनजोदड़ो
- चान्हूदड़ो
- लोथल
- कालीबंगा
हड़प्पा के उत्खननों से पता चलता है कि यह नगर तीन मील के घेरे में बसा हुआ था. वहाँ जो भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं उनमें स्थापत्य की दृष्टि से दुर्ग एवं रक्षा प्राचीर के अतिरिक्त निवासों – गृहों, चबूतरों तथा “अन्नागार” का विशेष महत्त्व है. वास्तव में सिंधु घाटी सभ्यता का हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, सुत्कागेन-डोर एवं सुरकोटदा आदि की “नगर निर्माण योजना” (town planning) में मुख्य रूप से समानता मिलती है. इनमें से अधिकांश पुरास्थ्लों पर पूर्व एवं पश्चिम दिशा में स्थित “दो टीले” हैं.
कालीबंगा ही एक ऐसा स्थल है जहाँ का का “नगर क्षेत्र” भी रक्षा प्राचीर से घिरा है. परन्तु लोथल तथा सुरकोटदा के दुर्ग तथा नगर क्षेत्र दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से आवेष्टित थे. ऐसा प्रतीत होता है कि दुर्ग के अंदर महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक तथा धार्मिक भवन एवं “अन्नागार” स्थित थे. संभवतः हड़प्पा में गढ़ी के अन्दर समुचित ढंग से उत्खनन नहीं हुआ है.
भवन निर्माण और तकनीकें
“भवन निर्माण कला” सिन्धु घाटी सभ्यता के नगर नियोजन (town planning) का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष था. इन नगरों के स्थापत्य में “पक्की सुन्दर ईंटों” का प्रयोग उनके विकास के लम्बे इतिहास का प्रमाण है. ईंटों की चुनाई की ऐसी विधि विकसित कर ली गई थी जो किसी भी मानदंड के अनुसार वैज्ञानिक थी और “आधुनिक इंग्लिश बांड” से मिलती-जुलती थी. मकानों की दीवारों की चुनाई के समय ईंटों को पहले लम्बाई के आधार पर पुनः चौड़ाई के आधार पर जोड़ा गया है. चुनाई की इस पद्धति को “इंग्लिश बांड” कहते हैं.
हड़प्पा में मोहनजोदड़ो की भाँति विशाल भवनों के अवशेष प्राप्त नहीं हुए तथा कोटला (दुर्ग) के ऊपर जो अवशेष मिले हैं, उनसे प्राचीन स्थापत्य (architecture) पर कोई उल्लेखनीय प्रकाश नहीं पड़ता.
यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि लोथल, रंगपुर एवं कालीबंगा में भवनों के निर्माण में कच्ची ईंटों का भी प्रयोग किया गया है. कालीबंगा में पक्की ईंटों का प्रयोग केवल नालियों, कुओं तथा दलहीज के लिए किया गया था.