History, asked by bharatiparvati666, 9 months ago

हडपपा काल में मुख्य व्यवसाय में किन्हीं दो को जांच करें​

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Answered by adityasahu4463
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स सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि सर्वप्रथम 1921 में पाकिस्तान के शाहीवाल जिले के हड्प्पा नामक स्थल से इस सभ्यता की जानकारी प्राप्त हुई।

1922 में जब मोहनजोदड़ो एवं अन्य स्थलों का पता चला तब यह मानकर कि सिन्धु घाटी के इर्द-गिर्द ही इस सभ्यता का विस्तार है, उसका नामकरण ‘सिन्धु घाटी की सभ्यता’ किया गया। परन्तु यह नाम भी इस सभ्यता के सही-सही भौगोलिक परिप्रेक्ष्यों में अपर्याप्त है। अत: इसका उपयुक्त नाम हड़प्पा ही है क्योंकि किसी लुप्त सभ्यता का नामकरण प्राय: उस नाम के ऊपर कर दिया जाता है। जहाँ से सबसे पहले इस सभ्यता से सम्बन्धित सामग्री मिलती है।

वर्तमान में हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रफल 1,2,99,600 वर्ग मील है। इसका विस्तार पश्चिम में सुत्कगेन्डोर के मकरान तट से पूर्व में आलमगीर पुर (मेरठ जिला) एवं उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक था। सबसे उत्तर में गुमला एवं सबसे दक्षिण में सूरत जिले का हलवाना इसमें सम्मिलित हैं।

सैन्धव सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थलों की स्थिति तथा परिचय

बलूचिस्तान

   सुत्केगेन्डोर- इसका पता 1927 में जार्ज डेल्स ने लगाया था। 1962 में जार्ज डेल्स ने इसका पुरात्वेषण किया। यह स्थल दाश्क नदी के किनारे स्थित है। यहाँ एक बन्दरगाह, दुर्ग एवं निचले नगर की रूपरेखा मिली। एक बन्दरगाह के रूप में सम्भवतः सिन्धु सभ्यता, फारस एवं बेबीलोन के मध्य होने वाले व्यापार में इस स्थल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी।

   सोत्काकोह – यह शादी कौर नदी के मुहाने पर स्थित है। 1962 में इसे डेल्स ने खोजा था। यहाँ पर भी ऊपरी एवं निचली दो टीले मिले हैं। यह बन्दरगाह न होकर समुद्र तट एवं समुद्र से दूरवर्ती भू-भाग के मध्य व्यापार का केन्द्र रहा होगा।

   डाबरकोट – यह विंदार नदी के मुहाने पर स्थित है।

सिन्धु

   मोहनजोदड़ो -सिन्धु नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित सिन्धु सभ्यता के एक केन्द्र के रूप में मोहनजोदड़ो (मृतकों का टोला) की खोज 1922 में राखलदास बनर्जी ने उस समय की जब वे एक बौद्ध स्तूप का वहाँ पर उत्खनन करवा रहे थे। मार्शल के नेतृत्व में 1922 से 1923 तक यहाँ पुनः खुदाई कराई गई । यहाँ नगर निर्माण के चरण प्राप्त हुए हैं। 1950 में सर मार्टिमर व्हीलर ने पुन: यहाँ की खुदाई कराई । सन् 1964 और 1966 में अमरीका के पुरातत्वविद् डेल्स ने पुनः यहाँ उत्खनन करवाया।

   कोटदीजी – 1935 में धुर्ये ने इस स्थल से कुछ बर्तन इत्यादि प्राप्त किये थे। 1955-57 में फजल अहमद ने इस स्थल का उत्खनन करवाया। यहाँ पर सिन्धु सभ्यता के नीचे एक और संस्कृति के अवशेष मिले जिसे कोटदीजी संस्कृति कहा गया। यहाँ सिन्धु सभ्यता से सम्बन्धित बाणाग्न मिले हैं। यहाँ मकान कच्ची ईंटों के बने हैं परन्तु नीवों में पत्थर का प्रयोग हुआ है।

   चन्हूदडो – यह स्थल मोहनजोदड़ो से दक्षिण-पूर्व दिशा में लगभग 128.75 कि० मी० की दूरी पर स्थित है। यहाँ एक ही गढी प्राप्त है। ननी गोपाल मजूमदार ने इस स्थल को 1931 में ढूढ़ा था। पुन: मैके ने 1935 में इस स्थल का उत्खनन करवाया था। चन्हूदडो में सिन्धु सभ्यता के पूर्व की संस्कृतियों झूकर एवं झांगर संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

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