Haihar kaka ke jeevan meinnaaye kathinaiyo ka mool karaan kya tha? Aisee samaajik samasya ke samadhan ke kya oopay ho sakte hain?
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हरिहर काका एक निस्संतान वृद्ध की मर्मस्पर्शी कहानी है जिसके जरिये लेखक मिथिलेश्वर ने मानवीय रिश्तों और धार्मिक संस्थानों का खोखलापन उजागर किया है और दर्शाया है कि दोनों ही अपने स्वार्थों और पैसों के लालच में हरिहर काका को प्रताड़ित करके उनकी जायदाद अपने नाम करवाना चाहते हैं । ठाकुरबारी के महंत उन्हें एक कमरे में बंद करके उनकी संपत्ति ठाकुरबारी के नाम करने के लिए अंगूठा लगवाते हैं और जब वह वापिस अपने घर पर आते हैं तो उनके भाई उनसे अपनी संपत्ति अपने भतीजे के नाम कराने के लिए बलपूर्वक अंगूठा लगवा लेते हैं.। हरिहर काका मामला पुलिस में दर्ज करते हैं तो उन्हें पुलिस से सुरक्षा मिल जाती है । हरिहर काका मन ही मन इन बातों से टूट जाते हैं और हमेशा चुप रहने लगते हैं.। लेखक का उनसे अगाध प्रेम और उनके लिए सम्मान होने के कारण वह उनके घर जाते हैं परन्तु वह हरिहर काका दो उनकी चुप्पी से नहीं निकल पाते । उनकी चुप्पी के कारण ही जो पुलिसकर्मी उनकी रक्षा के लिए तैनात किये थे वही उनकी धन दौलत के बल पर ऐश करते हैं ।
कथा वाचक और हरिहर काका की
उम्र में काफी अंतर होने के बावजूद वह उनका पहला मित्र था। महंत और हरिहर काका के
भाई ने अपना लक्ष्य साधने के लिए हरिहर काका के साथ बुरा व्यवहार करा। हरिहर काका
अनपढ़ थे पर उनको दुनिया की बेहतर समझ थी। उन्होंने अपने अनुभव से सीखा था कि
संपत्ति छिन जाने के बाद व्यक्ति की बड़ी दुर्दशा होती है। वे अनेक लोगों के बारे
में जानते थे जिनकी संपत्ति अपने नाम लिखवाने के बाद उनके घर वालों ने उनकी हालत
कुत्ते से भी बत्तर कर दी थी। इसलिए उन्होंने तय कर लिया था कि जीते जी वे अपनी
जायदाद किसी के नाम नहीं लिखेंगे।
ठाकुरबारी की घटना के बाद उन्हें पता चल
गया कि कोई उन्हें मार नहीं सकता था, सिर्फ धमका सकता था। इसलिए उन्हें मृत्यु का
भय नहीं था और उन्होंने अपने भाइयों को इस बात के बारे में चुनौती भी दी थी।
हरिहर काका को जब यह असलियत पता चली कि सब
लोग उनकी जायदाद के पीछे पड़े हैं तो उन्हें उन सब लोगों की याद आई जिन्होंने अपने
परिवार के मोह में आकर अपनी जमीन उनके नाम कर दी थी और अपने अंतिम दिन तक कष्ट
भोगते रहे। वे लोग भोजन तक के लिए तरसते रहे। इसलिए उन्होंने सोचा कि ऐसा जीवन
व्यतीत करने से तो एक बार मरना अच्छा है। उन्होंने तय किया कि जीते जी किसी को
जमीन नहीं देंगे। वे मरने को तैयार थे। इसीलिए लेखक कहते हैं कि अज्ञान की स्थिति
में मनुष्य मृत्यु से डरता है परन्तु ज्ञान होने पर मृत्यु वरण को तैयार रहता
है।