हम अजमेर शरीफ घूमने गए थे निबंध और हमारा अनुभव in 250-300 words
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Ans: अजमेर में ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और 14 कि.मी. की दूरी पर पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के कारण, यहाँ दो संस्कृतियों का समन्वय होता है। 7 वीं शताब्दी में राजा अजयपाल चौहान ने इस नगरी की स्थापना ‘अजय मेरू’ के नाम से की। यह 12वीं सदी के अंत तक चौहान वंश का केन्द्र था। जयपुर के दक्षिण पश्चिम में बसा अजमेर शहर, अनेक राजवंशों का शासन देख चुका है। 1193 ई. में मोहम्मद ग़ौरी के आक्रमण तथा पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद, मुगलों ने अजमेर को अपना ईष्ट स्थान माना। सूफी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती को ’ग़रीब नवाज़' के नाम से जाना जाता है और अजमेर में उनकी बहुत सुन्दर तथा विशाल दरगाह है। प्रत्येक वर्ष ख़्वाजा के उर्स (पुण्यतिथि) के अवसर पर लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं। अजमेर शहर को शैक्षणिक स्तर पर भी उच्च स्थानों में माना जाता है। यहाँ पर अंग्रेजों द्वारा स्थापित मेयो कॉलेज, विश्वविख्यात है तथा इसकी स्थापत्य कला भी अभूतपूर्व है। यहां अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विदेशी छात्र भी पढ़ने आते हैं।अजमेर शरीफ दरगाह
अजमेर में दरगाह के अलावा भी बहुत से दर्शनीय स्थल हैं। अजमेर में सर्वाधिक देशी व विदेशी पर्यटक ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने तथा मन्नत पूरी होने पर चादर चढ़ाने आते हैं। सभी धर्मों के लोगों में ख़्वाजा साहब की बड़ी मान्यता है। दरगाह में तीन मुख्य दरवाजे़ हैं। मुख्य द्वार, ’निज़ाम दरवाज़ा’ निज़ाम हैदराबाद के नवाब द्वारा बनवाया गया, मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया ’शाहजहाँ दरवाजा’ और बुलन्द सुल्तान महमूद ख़िलजी द्वारा बनवाया गया ’बुलन्द दरवाजा’। उर्स के दौरान दरगाह पर झंडा चढ़ाने की रस्म के बाद, बड़ी देग (तांबे का बड़ा कढ़ाव) जिसमें 4800 किलो तथा छोटी देग में 2240 किलो खाद्य सामग्री पकाई जाती है। जिसे भक्त लोग प्रसाद के तौर पर बाँटते हैं। श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर भी इन देगों में भोजन पकवाते व बाँटते हैं। सर्वाधिक आश्चर्य की बात है कि यहाँ केवल शाकाहारी भोजन ही पकाया जाता है।