हम जब होंगे बड़े , घृणा का नाम मिटाकर लेंगे दम |
हिंसा के विषमय प्रवाह में , कब तक और बहेगा देश,
जब हम होंगे बड़े , देखना नहीं रहेगा यह परिवेश |
भ्रष्टाचार जमाखोरी की , आदत बहुत पुरानी है ,
ये कुरीतियाँ मिटा कर हमें तो , नई चेतना लानी है |
एक घरौंदे जैसा आखिर , कितना और ढहेगा देश ,
जब हम होंगे बड़े देखना , ऐसा नहीं रहेगा देश |
इसकी बागडोर हाथों में , जरा हमारे आने दो,
थोड़ा - सा बस पाँव हमारा , जीवन में टिक जाने दो |
हम खाते हैं शपथ , दुर्दशा कुछ नहीं सहेगा देश ,
घोर अभावों की ज्वाला में , कल से नहीं ढहेगा देश |
क. कविता में बच्चा क्या-क्या परिवर्तन करने का इच्छुक है ?
ख. हमारे समाज में क्या क्या बुराइयाँ आ गई हैं ?
ग. कवि क्या शपथ लेता है ?
घ. भ्रष्टाचार शब्द से प्रत्यय को अलग कीजिए |
ड. काव्यांश का शीर्षक लिखिए |
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sorry i needed points .,...........
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