हमें कैसी वाणी बोलनी चाहिए और क्यों
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वार्तालाप की शिष्टता मनुष्य को आदर का पात्र बनाती है और समाज में उसकी सफलता के लिए रास्ता साफ़ कर देती है। कटु वाणी आदमी को रुष्ट कर सकती है तो इसके विपरीत मधुर वाणी दूसरे को प्रसन्न भी कर सकती है। हमारी वाणी ही हमारी शिक्षा-दीक्षा, कुल की परंपरा और मर्यादा का परिचय देती है। शब्द संभाले बोलिए, शब्द के हाथ न पावं!
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Explanation:
ऐसी वाणी बोलिए , मन का आपा खोए ।
औरन को शीतल करे , अपहू ही शीतल होए ।।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
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मनुष्य के शरीर से निकली हर वस्तु बदबू करती है । आप सोच कर देख लें , हरेक वस्तु बदबू करती है , बस एक वाणी ही है जो सुगंध देती है , अगर आप किसी से मीठी वाणी बोलेंगे तो वो आपको अत्यंत प्रेम करेगा ।
और वाणी एक बार मुख से निकल गई तो वापस नहीं आयेगी , अतः सोच समझकर मीठी वाणी बोलनी चाहिए ।।