हम कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं , जिसे जो जिस रूप में चाहे , उस रूप में ढालकर
चाहे राक्षस बनाएँ, चाहे देवता।
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कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं , जिसे जो जिस रूप में चाहे , उस रूप में ढालकर
चाहे राक्षस बनाएँ, चाहे देवता।
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