हमें कक्षा में सबके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए और क्यों ? अपने शब्दों में लिखिए
Answers
Answer:
hame kashala sabke sath accha vahar karan chiya
lekin jo hamare mu lage uase samajan cahiye tabhi nahi samja to phir usaki dulai karni chaiy
हमें कक्षा में सबके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए और क्यों ? अपने शब्दों में लिखिए
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसे अपना सारा जीवन दूसरों के साथ बिताना पड़ता है। आपस में मिलने- जुलने की, बातचीत करने की, पूछताछ की और देन- लेन की अनिवार्य आवश्यकता रहती है। दूसरों से कोई ताल्लुक न रख कर अब जिन्दगी भी कायम नहीं रखी जा सकती। मनुष्य ने जब से अपनी जंगली दशा छोड़कर समाज में रहना सीखा है तभी से उसकी आवश्यकताओं और रहन सहन के अंगों में ऐसा परिवर्तन हो गया है कि वह रीछ की तरह एकान्त जीवन नहीं बिता सकता। जब सारा जीवन ही उसे दूसरों के सहयोग के आधार पर बिताना है तो स्वभावतः से यह सीखना चाहिये कि दूसरों से कैसा व्यवहार करे? समाज शास्त्रियों ने इस प्रश्न का विस्तृत विवेचन करके थोड़े से शब्दों में इसका उत्तर दिया है कि दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करें जैसा अपने लिए चाहते हैं। हर कोई चाहता है कि हमारे साथ भलमनसाहत का बर्ताव किया जाय। इसके लिए यह जरूरी है दूसरों से भी वैसी ही भलमनसाहत के साथ बरतें।
कई व्यक्तियों से मिलने की पुरानी याद हमें अभी तक बनी हुई है। एक सज्जन का स्वभाव बड़ा रुखा था। उनके घर पर मिलने गये तो पहले तो बहुत देर तक अपने काम में लगे रहे। पीछे रूखे स्वर में पूछा, कहिये कैसे आये? मैं उन्हीं के लाभ का कुछ सन्देश लेकर गया था। इस प्रकार की रुखाई को देखकर मुझे धक्का लगा और जिस लाभ को विस्तार के साथ बताकर उन्हें पूरी जानकारी कराना चाहता था, उसकी चर्चा न करके यों ही आपके दर्शनों के लिए आया था कहकर दो मिनट बाद उठ आया। वे अपने सम्बन्धी होते हैं फिर भी उस दिन की रुखाई मेरे दिल में चुभ गई और फिर इतने वर्षों में शायद एक बार ही किसी अत्यन्त जरूरी कार्यवश कुछ क्षण के लिए मिला हूँ।
मेरे एक दूसरे मित्र के स्वभाव में बड़ी नम्रता है। देखते ही अपने आसन से उठ खड़े होंगे। अभिवादन के पश्चात् कुशल समाचार पूछेंगे और किसी जरूरी काम में लगे होंगे तो उस काम को निपटा कर बातें करने की आज्ञा मांगेंगे। कभी कभी एक एक घन्टे बाद वे बात करने का समय निकाल पाते हैं पर उनके पास बैठकर इतना समय खर्च करते हुए भी किसी को बुरा नहीं लगता। बातचीत में प्रेम और सौजन्यता सनी होती है। उनसे बात करते हुए ऐसा मालूम होता है मानों किसी सगे भाई बन्धु से घुलकर बातें कर रहे हैं। बातचीत करने का ऐसा सुन्दर ढंग उन्हें है कि कुछ ही मिनटों में स्नेह पूर्वक आगन्तुक को आने का अभिप्राय पूछ लेते हैं और उसका उचित उत्तर दे देते हैं। अपना या दूसरे का समय व्यर्थ की बातों में नष्ट करने का या बार बार बैठने का वे आग्रह नहीं करते फिर भी थोड़े ही समय में चाय, पानी, पान, इलाइची से उन्हें जो कुछ सत्कार करना होता है, और जो बातें कहनी सुननी होती है उन्हें करके थोड़े ही समय में विदा दे देते हैं।
एक अन्य अपरिचित सज्जन जिनका नाम पता मुझे बिना डायरी देखें याद नहीं आ सकता भलमनसाहत में अद्भुत दीखे। हम उस वर्ष प्रयाग कुम्भ मेले पर इटावा स्टेशन से साथ हुए थे। रेल के डिब्बे में भीड़ अधिक थी। सब लोग धक्का मुक्का कर रहे थे। इन सज्जन ने डिब्बे में घुसने के बाद पास वाले लोगों को प्रेम पूर्वक समझाना आरम्भ किया। आत्मीयता से भरे उनके वाक्यों ने कुछ ही क्षण में डिब्बे में शान्ति कर दी। उन्होंने सब यात्रियों को बिना माँगे अपनी सेवा दी। जिनका सामान बेढंगे तौर से रखा था, उसे ठीक रखवाया, जिनके बच्चे प्यासे थे उनको पानी पिलाने का खुद इन्तजाम किया और भी जिसको जैसी छोटी मोटी तकलीफ थी, दूर करवाई। प्रयाग पहुँचते पहुँचते वे उस डिब्बे के सारे यात्रियों के नेता बन गये। स्टेशन से वे अलग होना चाहते थे, पर साथियों ने ऐसा नहीं करने दिया। चार रोज तक सब लोग गंगा तट पर ठहरे और भोजन ,, दर्शन, स्नान, मनोरंजन, खरीद करने का सारा प्रोग्राम उन्हीं की अध्यक्षता में हुआ। जब विदा हुए तो सब बारी- बारी उनसे गले मिले थे। उस बात को बीते एक मुद्दत गुजर गई पर मैं उस स्मृति को भूल नहीं सका हूँ।
ऐसे लोग तो रोज बहुत से मिलते हैं जिन्हें अपने मतलब से मतलब। काम की बात की, झंझट काटा। दूसरों के प्रति न तो उन्हें कोई सहानुभूति होती है और न रंज।