हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं जिसको जो रूप अच्छा लगे उसे ही अपने मन में स्वीकार करे। ऐसे लोगों का साथ करना हमारे लिए बुरा है जो हमसे अधिक दृढ संकल्प के हैं, क्योंकि हमें उनकी हर बात बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है। पर ऐसे लोगों का साथ करना और बुरा है जो हमारी ही बात को ऊपर रखते है क्योंकि ऐसी दशा में न तो हमारे ऊपर कोई दाब रहता है और न हमारे लिए कोई सहारा रहता है। दोनों अवस्थाओं में जिस बात का भय रहता है उसका पता युवा पुरुषों को प्रायः कम रहता है। यदि विवेक से काम लिया जाए तो भय नहीं रहता, पर युवा पुरुष प्रायः विवेक से काम लेते है कैसे आश्चर्य की बात है कि लोग एक घोड़ा लेते हैं, तो उसके गुणदोष कितना परख लेते हैं। पर किसी को मित्र बनाने में उसके पूर्व आचरण और प्रकृति आदि का कुछ भी विचार और अनुसंधान नहीं करते वे उसमें बातें अच्छी ही अच्छी मानकर अपना पूरा विश्वास जमा देते हैं। हँसमुख चेहरा, बातचीत का ढरा, थोड़ी चतुराई या साहस से दो-चार बातें किसी में देखकर लोग चटपट अपना बना लेते हैं। हम यह नहीं सोचते मैत्री का उद्देश्य क्या है। जीवन में उसका कुछ मूल्य है। यह एक ऐसा साधन है जिसमे आत्म शिक्षा का कार्य सुगम हो जाता है। विद्वानों का मत है विश्वासपात्र मित्र से भारी रक्षा होती है जिसे ऐसा मित्र मिल जाए मानो उसे खजाना मिल गया। मित्र एक औषधि के समान है।
(क) हम लोग किस के समान होते हैं? (ख) कैसे लोगों का साथ हमारे लिए बुरा होता है?
(ग) मित्र बनाते समय हमे किस चीज की परख करनी चाहिए? (घ) विश्वास पात्र मित्र के क्या लाभ है?
(ङ) विश्वास पात्र मित्र किसके समान है?
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(क) . हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान होते है|
(ख). जिसको जो रूप अच्छा लगे उसे ही अपने मन में स्वीकार करे। ऐसे लोगों का साथ करना हमारे लिए बुरा है |
(ड). विश्वासपात्र मित्र एक औषधि के समान है।
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