हम लोग तीन सिद्ध जातियों से भली-भांति परिचित हैं- श्रमजीवी, बदधिजीवी और परजीवी। श्रमजीवी अपने परिश्रम से जीवन-यापन करता है, बुद्धिजीवी खुद को श्रमजीवी से श्रेष्ठ समझता है। उसका विचार है कि समाज को बुद्धि से दिया गया योगदान ही सर्वश्रेष्ठ है। इसके बदले में वह धन-संपदा से पहले मान-सम्मान और पुरस्कार की अपेक्षा रखता है। परजीवी का कार्यकलाप पैरासाइंट कहने मात्र से स्पष्ट हो जाता है अर्थात दूसरों के बलबूते जीने वाले। भी इन सबसे बढ़कर एक नई जाति पैदा हो गई है- बयानजीवी। यह जाति मात्र बयान देकर अपना जीवन-यापन करती है। बड़े-बड़े कर्मठ और परिश्रमी लोग इस जाति से मात खा जाते हैं। महान बुद्धिजीवी इस जाति के आ भरते हैं और परजीवी इसकी काहिली देख हाथ जोड़ देते हैं। इस जाति का काम सुबह देर तक सोना, विस्तर पर पड़े-पड़े टीवी देख दोपहर होने के बाद खबरों की जुगाली करना होता है। अमूमन ऐसे लोग वे होते हैं जिनकी खुद की औकात कुछ नहीं होती, पर वे बयान ऐसी हस्ती को टारगेट कर देते हैं कि खुद-ब-खुद लाइम लाइट में आ जाते हैं। फिर एक दिन बिना कुछ किए-धरे बड़े नेता बन जाते
साहित्य और कला के क्षेत्र में तो समाज बयानजीवियों का कृतज्ञ है। ये बयानजीवी अपने बयान से कुछ लेखकों को स्थापित कर कुछ स्थापित लेखकों को विस्थापित करने जैसे कार्य न करें तो समाज को पता ही न चले कि साहित्य के क्षेत्र में हो क्या रहा है। ये बयानजीवी रचना या पुस्तक को बेस्ट सेलर बना सकते हैं। एक बयानजीवी किसी पिटी हुई टीआरपी के शो में अपने बयान से नई जान फूंक सकता है
प्र.1. खबरों की जुगाली करने से क्या अभिप्राय है?
प्र.2. बयानजीवी बिना कुछ किए-धरे बड़े नेता कैसे बन जाते हैं ?
प्र.3. 'जान फूँकना' मुहावरे का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
प्र.4. स्थापित लेखकों को विस्थापित करने से लेखक का क्या आशय है?
प्र.5. इस गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहते हैं ?
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sry i don't know hindi otherwise I could help u
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