Hindi, asked by charulmeena, 7 months ago

हमैं लघु वस्तु का तिरस्कार क्यों नही करना चाहिए? ​

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Answered by Ronakbhuyan1234540
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Answer:

here is your answer

Explanation:

अर्थ:

रहीम दो हृदयों का प्रेम एक धागे की तरह होता है जिसे कभी मत तोड़ो.

ये टूट कर दुबारा नहीं जुड़ता और अगर जुड़ भी जाता है तो तो उसमें गांठ पड़ जाती है.

भाव:

रहीम दास जी कहते है कि अगर किसी से आपका स्नेह पूर्ण संबंध है तो उस संबंध को और आपस के भरोसे को कभी न तोड़िए क्यों कि एक बार अगर ये संबंध टूट जाता है तो आसानी से वापस नहीं जुड़ता और अगर जुड़ भी जाता है तो उसमें गांठ पड़ जाती है अर्थात पहले वाली बात और भरोसा नहीं रहता.

शब्दार्थ:

◇ तोरउ — तोड़िए.

◇ चटकाय — चटकाकर.

◇ जुरे — जुड़े.

◇ गांठि — गांठ.

◇ परि जाय — पड़ जाए.

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(2)

जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग।।

अर्थ:

जो व्यक्ति अच्छे चरित्र का है बुरी संगत उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती.

जिस प्रकार चंदन के पेड़ से विषैले सर्प लिपटे रहते हैं लेकिन चंदन पर उनका असर कुछ नहीं होता है.

भाव:

रहीम दास जी कहते है कि जो लोग वास्तव में चरित्रवान होते है वे हमेशा ऐसे ही रहते हैं अगर उनकी संगत चरित्रहीन बुरे लोगो के साथ होती है तब भी उनके चरित्र पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है. ऐसे लोगो की तुलना चंदन के पेड़ से की जा सकती है जिस पर बहुत से सांप लिपटे रहते हैं परन्तु फिर भी चंदन पर उनके के विष का कुछ असर नहीं होता है.

शब्दार्थ:

◇ उत्तम — अच्छा, अच्छी.

◇ प्रकृति — स्वभाव.

◇ का — क्या.

◇ करि सकत — कर सकते हैं.

◇ कुसंग — बुरी संगत.

◇ व्यापत — फैलता है.

◇ भुजंग — सांप.

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(3)

रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिये डारि।

जहाँ काम आवे सुई कहा करै तरवारि।।

अर्थ:

किसी बड़े को देखकर छोटे का तिरस्कार मत कीजिए.

क्यों कि जहां पर सुई का काम होता है वहां तलवार काम नहीं आती.

भाव:

रहीम दास जी कहते है कि प्रायः देखा जाता है कि किसी का सम्बन्ध जब बड़े लोगो से हो जाता है तो वह उन लोगो की उपेक्षा करने लगता जिनको वह छोटा या कमतर समझता है. ऐसा नहीं करना चाहिए क्यों कि जो काम ये छोटे लोग कर सकते हैं वह बड़े लोग नहीं कर सकते हैं, जहां वह साथ दे सकते हैं बड़े लोग नहीं दे सकते है. यह समझना चाहिए कि हर वस्तु और हर व्यक्ति का अपना महत्व है, अपना स्थान है, कोई किसी का स्थान नहीं ले सकता. अगर कहीं पर सुई का का काम है तो तलवार उस सुई की जगह नहीं ले सकती.

शब्दार्थ:

◇ बड़ेन — बड़ी वस्तु या लोग.

◇ लघु — छोटी वस्तु या लोग.

◇ डारि — डाल देना, हटा देना.

◇ कहा — क्या.

◇ करै — करे.

◇ तरवारि — तलवार.

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(4)

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

अर्थ:

कोई बात बिगड़ने के बाद बन नहीं पाती है चाहे आप लाख जतन और उपाय कर लीजिए.

रहीम, क्यों की फटे हुए दूध को मथने से उससे मक्खन नहीं निकल पाता है.

भाव:

रहीम दास जी कहते है कि जहां तक हो सके हमें किसी से बिगाड़ नहीं पैदा करना चाहिए क्योंकि एक बार बात बिगड़ जाने के बाद बन नहीं पाती है. जिस प्रकार दूध अगर फट जाता है फिर उसको आप चाहे जितना मथेंगे उससे मक्खन की प्राप्ति नहीं हो सकती, इसी प्रकार जब तक बात बनी है आप दूसरों से अच्छे व्यवहार की आशा कर सकते हैं परन्तु बात बिगड़ने के बाद दूसरों से अनुकूल व्यवहार की अपेक्षा नहीं कर सकते.

शब्दार्थ:

◇ बिगरी — बिगड़ी.

◇ किन कोय — उपाय.

◇ फाटे — फटे.

◇ मथे — मथने से.

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(5)

समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।

सदा रहे नहीं एक सी, का रहीम पछितात।।

अर्थ:

समय आने पर ही फल आते हैं और समय आने पर ही झड़ जाते हैं.

समय कभी एक सा नहीं रहता फिर रहीम पछतावा किस लिए?

भाव:

रहीम दास जी कहते हैं कि हर काम उचित समय आने पर ही होता है, जब समय आता है तो पेड़ों पर अपने आप फल आ जाते हैं और समय आने पर चले भी जाते हैं. हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि समय कभी एक सा नहीं रहता इसीलिए पछताने से कोई फायदा नहीं परेशान होने से कोई फायदा नहीं, जो काम होना है उचित समय आने पर हो ही जाएगा.

शब्दार्थ:

◇ समय पाय — समय आने पर.

◇ झरी जात — झड़ जाते हैं.

◇ पछितात — पछताते हो.

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(6)

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।

बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।

अर्थ:

रहीम वे लोग बहुत अच्छे हैं जो अपने शरीर और अंग प्रत्यंग को दूसरों की भलाई के लिए काम में लाते हैं.

अच्छाई बांटने से बांटने वाले को भी अच्छाई मिलती है जैसे मेंहदी दूसरे को रंग बांट कर खुद भी रंगीन हो जाती है.

भाव:

रहीम दास जी कहते हैं कि मानव जाति का जन्म दूसरों कि भलाई के लिए हुआ है अतः हमें सदैव पर हित के लिए काम करते रहना चाहिए, जो लोग दूसरों के भले के लिए कष्ट उठाते हैं ऐसे लोग धन्य हैं क्यों जिस प्रकार मेंहदी दूसरे को रंग देकर खुद लाल हो जाती है उसी प्रकार दूसरों का भला करने वाले का खुद भी भला होता है. संसार में उसे मन कि शांति मिलती है और मृत्यु उपरांत उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

शब्दार्थ:

◇ नर — मनुष्य.

◇ धन्य हैं — श्रेष्ठ हैं, अच्छे हैं.

◇ पर उपकारी — दूसरों का भला करने वाले.

◇ अंग — हाथ पैर आदि अंग.

◇ बांटन वारे — बांटने वाले को.

◇ ज्यों — जैसे.

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