हम मान रहित, अपमान रहित
जी भर कर खुलकर खेल चुके।
हम हँसते-हँसते आज यहाँ
प्राणों की बाजी हार चले।
इस पंक्ति से कवि का क्या तात्पर्य है?
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हम दीवानों की क्या हस्ती, हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले, मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले। आए बन कर उल्लास अभी, आँसू बन कर बह चले अभी, सब कहते ही रह गए, अरे, तुम कैसे आए, कहाँ चले? किस ओर चले? यह मत पूछो, चलना है, बस इसलिए चले, जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले, दो बात कही, दो बात सुनी।
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