हमें मुसीबतों का सामना धैर्यपूर्वक करना चाहिए। इसे अशुद्ध वाक्य को शुद्ध करके पुनः लिखिए
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मुसीबत किसी पर भी आ सकती है। शास्त्र में लिखा है, ‘न तो दौड़ में वेग दौड़नेवाले और न युद्ध में शूरवीर जीतते, वे सब समय और संयोग के वश में हैं।’ (सभोपदेशक 9:11) इनमें वे जवान लोग भी हैं, जिन्होंने मुसीबत का सामना किया है। उन्होंने यह कैसे किया? आइए दो लोगों से इस बारे में जानें।
उन्हें छोड़ नहीं सकते। और वे मुझे कैसे छोड़कर जा सकते हैं?’
इस बारे में किसी से बात करना बहुत मुश्किल था। मैं इस बारे में सोचना नहीं चाहती थी। हालाँकि उस वक्त मुझे पता नहीं चल रहा था, लेकिन मैं गुस्से में रहती थी। मैं बहुत परेशान रहने लगी और मुझे नींद भी नहीं आती थी।
जब मैं 19 साल की हुई, तब मम्मी की मौत हो गयी। उन्हें कैंसर हो गया था। वे मेरी सबसे अच्छी दोस्त थीं।
मम्मी-पापा के तलाक से मैं पहले से ही सदमे में थी। मम्मी की मौत से तो मैं पूरी तरह टूट गयी। मैं अब भी इस दुख से उबर नहीं पायी हूँ। नींद तो जैसे उड़ ही गयी है। मैं आज भी बहुत परेशान रहती हूँ।
लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं, जिनसे मुझे बहुत मदद मिली है। जैसे, नीतिवचन 18:1 हमें खबरदार करता है कि हम खुद को दूसरों से अलग न करें। मैं यह सलाह मानने की पूरी कोशिश करती हूँ।
मैं यहोवा की साक्षी हूँ, इसलिए मैं बाइबल पर आधारित किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ती हूँ। इनसे मुझे हौसला मिलता है। जब मेरे मम्मी-पापा का तलाक हुआ, तो मुझे एक किताब से बहुत मदद मिली। वह है, क्वेश्चन्स यंग पीपल आस्क—आंसर्स दैट वर्क। खासकर इस किताब के वॉल्यूम 2 में इस अध्याय से मुझे काफी मदद मिली, “क्या मैं ऐसे परिवार में खुश रह सकता हूँ, जिसमें अकेली माँ या अकेले पिता हों?”
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सोहन और मोहन के बीच गहरी दोस्ती थी दोनों एक साथ पढ़ते थे और दोनों का घर भी एक ही गाव में आसपास था तो दोनों एक दुसरे के साथ खूब खेलते और मस्ती करते थे,
सोहन जो की काफी शांत स्वाभाव का जबकि मोहन थोडा शरारती था लेकीन सोहन मोहन को हमेशा समझता रहता था की वह शैतानी नही किया करे नही तो कभी खुद को मुसीबत में डाल सकता है लेकिन मोहन को शैतानी करने में खूब मजा आता था इसलिए वह सोहन की बातो को अनसुना कर दिया करता था,