Hindi, asked by petiwala30, 10 months ago

(२)
हम न मरें मरिहै संसारा।
हमको मिला जिआवनहारा ॥
साकत मरहिं संत जन जीवहिं, भरि भरि राम रसाइन पीवहिं।
हरि मरिहै तो हमहूँ मरिहैं, हरि न मरै हम काहे कौ मरिहैं ।
कहै कबीर मन मनहिं मिलावा अमर भया सुखसागर पावा॥
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Answered by shishir303
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हम न मरेँ मरिहै संसारा।

हम कूँ मिल्या जियावनहारा।।

अब न मरौं मरने मन माना,

तेई मुख जिनि राम न जाना ।

साकत मरैं संत जन जीवै,

भरि भरि राम रसाइन पीवै ॥

हरि मरिहैं तो हमहूँ मरिहैं,

हरि न मरैं हम काहे कूँ मरिहैं ।

कहै कबीर मन मनहि मिलावा,

अमर भर सुख सागर पावा।।

भावार्थ ⦂ अर्थात कबीर कहते हैं कि अब मैं ना तो मरूंगा और ना ही मेरे मन में मरने का कोई डर है। मरते वे लोग हैं जिन्हें राम अर्थात ईश्वर का ज्ञान नहीं होता। जो ईश्वर को नहीं समझ पाते, ऐसी अज्ञानियों को ही मरने का डर होता है। जो संत लोग हैं, वह तो सदा ही जीवित रहते हैं। संत लोगों ने तो राम नाम के प्रेम रूपी अमृत का पान कर लिया है और वह जीने-मरने के बंधन से मुक्त हो चुके हैं और उन्हें मरने का कोई डर नहीं होता। ऐसे संत लोग तो ईश्वर प्रेम रूपी अमृत का पान करके अमर हो चुके हैं, सुख के सागर में गोता लगा रहे हैं।

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