हम नदियों को साफ़ कैसे रख सकते हैं
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Nadiyo me kuda kachra na fek k hm Nadiyo ko saf rakh skte h☺️
नदियां जो जल के पवित्र स्रोत और हमारे देश की जीवनरेखाएं हैं, प्रदूषण के कारण गंभीर रूप से खतरे में हैं। सद्गुरु भारत में नदी प्रदूषण की प्रमुख वजहों और उसके समाधानों के बारे में बता रहे हैं।
सद्गुरु : कुछ ही दशक पहले तक देश भर में लोग, पीने के पानी के लिए, कपड़े धोने, नहाने या बस तैरने के लिए आस-पास किसी धारा या नदी तक चले जाया करते थे। आज ऐसा कुछ भी करने का सवाल ही नहीं उठता। और अगर ऐसा करते भी हैं तो सेहत पर उसके गंभीर दुष्परिणाम(बुरे नतीजे) हो सकते हैं। दुनिया की बहुत सारी नदियों की तरह भारतीय नदियों का पानी भी प्रदूषित हो चुका है, जबकि इन नदियों को हमारी संस्कृति में हमेशा पवित्र जगह दी जाती रही है। पर साथ ही, भारत के लोग इन नदियों से मुंह नहीं फेर सकते। वे देश की जीवनरेखाएं हैं और भारत का भविष्य कई रूपों में हमारी नदियों की सेहत से जुड़ा हुआ है।
नदी प्रदूषण के दो कारण
हमारी नदियों के प्रदूषण की दो वजहें हैं। एक को हम कहते हैं – प्वाइंट सोर्स यानी नदियों में किसी एक जगह से बहुत सारा कचरा गिरना – जैसे उद्योगों से निकला कचरा कुछ स्थानों से भारी मात्रा में नदी में गिरता है। दूसरे को कहा जाता है – नॉन-प्वाइंट सोर्स, इसमें वो कचरा आता है जो नदियों के पूरे रास्ते अलग-अलग कई जगहों से उसमें गिरता रहता है – जैसे खेती की ज़मीन से होकर नदी में जाने वाला जल।
खेतों से होकर आने वाला जल भी नदियों के लिए नुकसानदेह है क्योंकि खेती में केमिकल्स का इस्तेमाल होता है। मिटृटी को मिट्टी कहने के लिए उसमें कम से कम दो फीसदी ऑर्गैनिक(जैविक या खाद से जुड़ा) तत्व होना चाहिए। अगर आप इस ऑर्गैनिक तत्व को निकाल देंगे तो हम उस मिट्टी को रेत कहेंगे, और ऐसी जमीन खेती के लिए सही नहीं है। पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे कई भारतीय राज्यों में, मिट्टी में ऑर्गैनिक तत्व का प्रतिशत 0.05 है। इससे हम उस जमीन को रेगिस्तान बना रहे हैं, जिसने हजारों सालों से हमें भोजन दिया है।
प्वाइंट सोर्स पॉलूशन आम तौर पर उद्योगों का रासायनिक कचरा या शहरों का गंदा पानी होता है। शहरों में जैसे बिजली, पानी और गैस के मीटर लगे होते हैं, उसी तरह गंदे पानी का भी मीटर होना चाहिए और घरों तथा उद्योगों को मीटर के हिसाब से भुगतान करना चाहिए।
आज मुंबई जैसा शहर एक दिन में 2100 मिलियन लीटर गंदा पानी पैदा करता है। फिलहाल अधिकांश पानी समुद्र में जाता है। लेकिन अगर उसे उपचारित करके माइक्रो-इरिगेशन के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो उससे हजारों हेक्टेयर जमीन पर खेती हो सकती है। 200 भारतीय शहरों का गंदा पानी मिलाकर 36 अरब लीटर होता है, जिससे 30 से 90 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकती है।
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