हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता का सार
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- हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता का मूल भाव /सारांश
- सोने के पिंजरे और सोने की कटोरी में मैदा खाने से जीवन का अभिप्राय सफल नहीं होता है। उनके पुलकित पंख सोने के पिंजरों की तीलियों से टकराकर टूट जायेंगे। पंछी उन्मुक्त विचरण करने वाले होते हैं। वह नदियों ,झरने का पानी पीने वाले हैं।
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