हम पंक्षी उन्मुक्त गगन के कविता को लिखें और याद करें ।
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हम पंछी उन्मुक्त गगन के का भावार्थ
हम पंछी उन्मुक्त गगन के भावार्थ - पिंजरे में बंद पंछियों का कहना है कि हम खुले आकाश में विचरण करने वाले पक्षी हैं। हम पिंजरे में बंद होकर नहीं रह सकते सोने के पिंजरे की सलाखों से टकरा-टकराकर हमारे कोमल पंख टूट जाएंगे।
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हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएंगे, कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएँगे।
हम बहता जल पीनेवाले मर जाएँगे भूखे-प्यासे, कहीं भली है कटुक निबोरी कनक कटोरी की मैदा से,
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