हम पक्षी उन्मुक्त गगन के शब्दार्थ
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हम पंछी उन्मुक्त गगन के का भावार्थ
उनका कहना है कि हम तो नदी-झरनों का बहता जल पीने वाले हैं। ... वास्तव में पक्षी खुले वातावरण में घूम-घूमकर बहता जल पीकर और नीम की निबौरी को खाकर ही खुश रहते हैं। पक्षियों के माध्यम से कवि कहता है कि सोने की सलाखों से निर्मित पिंजरे में रहकर तो हम अपनी उड़ान व उसकी गति भी भूल गए हैं।
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हम पंछी उन्मुक्त गगन के का भावार्थ;
उनका कहना है कि हम तो नदी-झरनों का बहता जल पीने वाले हैं। ... वास्तव में पक्षी खुले वातावरण में घूम-घूमकर बहता जल पीकर और नीम की निबौरी को खाकर ही खुश रहते हैं। पक्षियों के माध्यम से कवि कहता है कि सोने की सलाखों से निर्मित पिंजरे में रहकर तो हम अपनी उड़ान व उसकी गति भी भूल गए हैं।
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